प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर आयोजित सनातन धर्म संसद में सनातन बोर्ड के गठन को लेकर संतों के बीच गहरी असहमति उभरकर सामने आई है. इस मुद्दे पर संतों के अलग-अलग मत और विचार सामने आ रहे हैं. सनातन धर्म और इसकी भलाई के लिए इस बोर्ड की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन संतों और अखाड़ों के बीच इस विषय पर एकता नहीं बन पा रही है.
सनातन धर्म संसद में संत देवकीनंदन ठाकुर ने भावुक होकर अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने संत समाज को लिखित पत्र देकर स्पष्ट किया कि वह किसी पद के इच्छुक नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं केवल सनातन धर्म की भलाई के लिए सनातन बोर्ड की मांग कर रहा हूं.’ हालांकि, कुछ संतों का यह कहना है कि देवकीनंदन ठाकुर खुद इस बोर्ड के अध्यक्ष बनना चाहते हैं, जिसे लेकर मतभेद गहरा हो गया है. इसके साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि न पद चाहता हूं, न प्रतिष्ठा चाहता हूं, मैं तो बस सुरक्षित हिंदुस्तान चाहता हूं.
अखाड़ा परिषद की प्रतिक्रिया
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज धर्म संसद में शामिल नहीं हुए. उनकी अनुपस्थिति ने सनातन बोर्ड के मुद्दे पर सहमति की संभावनाओं को और कमजोर कर दिया. अखाड़ों के कई संत अभी भी इस प्रस्ताव पर एकमत नहीं हो पा रहे हैं, जिससे सनातन धर्म संसद में इस पर गहन चर्चा की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
क्या है सनातन बोर्ड का प्रस्ताव?
सनातन बोर्ड के प्रस्ताव में कई महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं, जिनमें मथुरा में श्री कृष्ण का भव्य मंदिर निर्माण, सभी मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना, गौ रक्षा, लिविंग रिलेशनशिप पर रोक, और सनातनी लोगों द्वारा अपनी ही जाति में विवाह करने जैसे विषय शामिल हैं. इन प्रस्तावों पर महाकुंभ में आए संत-महात्मा और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर अपनी राय दी.