बूथ से लेकर प्रदेश स्तर का प्लान, 2027 में विपक्ष को चित करने की रणनीति

उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के पीडीए फार्मूले से लगे सियासी झटके से सबक लेते हुए बीजेपी अपने स्वरूप और कार्यप्रणाली में बदलाव लाने की पहल शुरू कर दी है. बीजेपी अपने यूपी संगठन में बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक अलग रूप देकर नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटी है. बीजेपी के बूथ अध्यक्षों के बाद मंडल अध्यक्ष की फेहरिश्त आनी शुरू हो गई है, जिसमें साफ तौर पर नियुक्त मंडल अध्यक्ष के नाम के साथ उनकी जाति का भी उल्लेख किया गया है. इस तरह बीजेपी अपने संगठन में करीब 50 फीसदी हिस्सेदारी दलित-पिछड़ों को देकर 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्ष को चित करने की रणनीति बनाई है.

बीजेपी ने दिसंबर 2024 को यूपी संगठन बनाने का लक्ष्य रखा था. बूथ अध्यक्षों के बाद अब मंडल अध्यक्ष बनाने का काम 60 फीसदी पूरा हो चुका है. बीजेपी ने जिन जिलों में मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति कर ली है, उसकी लिस्ट जारी करनी शुरू कर दी है. टीवी-9 को ऐसी ही एक लिस्ट मिली है, जो सोनभद्र जिले की है. बीजेपी ने सोनभद्र जिले में मंडल अध्यक्ष और जिला प्रतिनिधि घोषित किए हैं, उसकी लिस्ट में साफ तौर पर नाम के साथ जाति का उल्लेख किया गया है. मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति में सभी जाति-वर्गों को शामिल किया जाएगा, क्षेत्र में जिस जाति की संख्या ज्यादा होगी, उस जाति को प्रमुखता दी गई है.

विरोधियों को मात देने की रणनीति

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में है, उससे पहले बीजेपी अपनी रणनीति से विरोधियों को मात देने की स्ट्रैटेजी है. संगठन के जरिए बीजेपी ऐसी सोसश इंजीनियरिंग बनाने में जुटी है, जिसके जरिए सपा के पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक समीकरण को जमीन पर काउंटर करने की है. इसलिए बीजेपी ने छोटे और बड़े सभी स्तर पर इन वर्ग से नेतृत्व निकाल कर अलग राजनीतिक दांव चलने की तैयारी में है. बीजेपी ने जिस तरह बूथ स्तर से लेकर मंडल और प्रदेश स्तर पर दलित-पिछड़ों को जगह देने की रणनीति बनाई है, उसके जरिए पार्टी की भावी प्लान को समझा जा सकता है.

बीजेपी के मंडल अध्यक्षों की सूची में दलित और ओबीसी के साथ अलग-अलग जातियों के नाम लिखे गए हैं. उदाहरण के लिए सोनभद्र के घोरवाल का मंडल अध्यक्ष श्रीमती सीमा गुप्ता को बनाया गया है, जिनके आगे उनकी जाति बनिया लिखी गई है. इसी तरह शिवद्वार मंडल अध्यक्ष विमलेश चौबे बनाए गए हैं, जिनके नाम के साथ ब्राह्मण भी लिखा गया है. ऐसे ही मधुपुर मंडल की कमान विजय चौहान, गौरीशंकर मंडल अध्यक्ष रामबली मौर्य, शाहगंज मंडल अध्यक्ष मनीष कुमार पटेल और करमा मंडल अध्यक्ष आशुतोष सिंह अंकुर को बनाया गया है, जिनके नाम के साथ उनके जाति भी लिखी गई है.

दलित पिछड़ों पर बीजेपी का फोकस

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने मंडल अध्यक्ष की नियुक्त में इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि एक विधानसभा क्षेत्र में किसी एक जाति से मंडल अध्यक्ष बनाए जाने के बजाय अलग-अलग जातियों से नियुक्ति की गई है. इस बात भी ध्यान रखा जा रहा कि क्षेत्र में जिस जाति-वर्ग के लोग ज्यादा हैं, उसी जाति से मंडल अध्यक्ष बनाए जा रहे हैं. इस तरह से बीजेपी ने अन्य जातियों का उचित सम्मान देकर नई सोशल इंजीनियरिंग बनाई है. बीजेपी ने एक विधानसभा क्षेत्र में एक साथ चार से पांच प्रमुख जातियों को साधकर रखने की स्ट्रैटेजी पर काम कर रही है.

यूपी बीजेपी के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बार पार्टी ने संगठन में 33 फीसदी महिलाओं और 50 फीसदी दलित-ओबीसी को भागीदारी देने की योजना बनाई है. इसीलिए बूथ स्तर पर अध्यक्षों की नियुक्ति से लेकर मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति में नाम के साथ जाति का भी जिक्र किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी संगठन में सभी जाति और वर्ग को जगह देकर एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की है.

सपा की रणनीति को काउंटर करने का दांव

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पिछड़-दलित-अल्पसंख्यक यानि पीडीए का फॉर्मूला बनाया था. सपा का पीडीए फार्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव में हिट रहा. इसके चलते ही यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सपा 37 सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी 33 सीट पर ही सिमट गई है, जिसकी वजह से पीएम मोदी अपने दम पर यानि बहुमत के साथ सरकार नहीं बना सके. बीजेपी को अपने सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी है. लोकसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए बीजेपी ने यूपी संगठन में दलित और पिछड़े को उनकी आबादी के लिहाज से जगह देकर सपा के पीडीए फार्मूले को काउंटर करने और 2027 में होने वाले चुनाव में लिए एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के साथ उतरने की रणनीति अपनाई है.

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