वाराणसी के ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी में नियमित दर्शन की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर जिला जज की अदालत में गुरुवार को सुनवाई हुई। इस मुद्दे पर कई तारीखों से जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में चल रही सुनवाई के क्रम में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के बाद पांचों वादिनीगण और डीएम, पुलिस आयुक्त व मुख्य सचिव प्रदेश शाशन की तरफ से बहस गुरुवार को पूरी कर ली गई। अब मुस्लिम पक्ष यानि मसाजिद कमेटी को जवाबी बहस के लिए 25 जुलाई की तिथि तय की गई है।
गुरुवार को सुनवाई शुरू होते ही वादिनी राखी सिंह की तरफ से मानबहादुर सिंह ने अपनी बहस जारी रखी। कहा कि यह वाद सिर्फ दर्शन-पूजन-राग व भोग के लिए दाखिल किया गया है। विशेष धर्म उपासना स्थल 1991 में यह कहा गया है कि आजादी के समय जो धर्म स्थलों की स्थिति थी वही रहेगी। यह वाद इससे इतर है। इसमें सिर्फ दर्शन-पूजन की बात कही गई है।
ज्ञानवापी में मिले पूजा-पाठ का अधिकार
कहा कि स्वरूप बदलने की बात नहीं की गई है। इसके बावजूद इस मामले को हिंदू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद का विवाद बताकर तूल दिया गया। दर्शन-पूजन हमारा सिविल अधिकार है। इसे रोका नहीं जाना चाहिए। हम इसके अधिकारी हैं इसलिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अदालत में बहस के दौरान श्रृंगार गौरी कहां स्थित है, इसे कोर्ट में स्पष्ट कर बताया गया कि विवादित मस्जिद के पीछे है। बताया गया कि अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है। दलील में कहा गया कि कि पूजा-पाठ पर लगी रोक को हटाई जाए। सिविल अधिकार के तहत पूजा-पाठ करने दिए जाने की मांग की गई।
वादिनी पक्ष की दलील समाप्त होने पर काशी विश्वनाथ मंदिर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी और गिरीश उपाध्याय ने इस वाद में पक्षकार बनाए जाने के आवेदन पर अपना पक्ष रखना चाहा। इस पर जिला जज ने यह कहते हुए इजाजत नहीं दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ऑर्डर-7 रूल-11 के आवेदन पर निर्णय देना है। पक्षकार बनने के मुद्दे पर बाद में सुनवाई होगी।इसके बाद डीएम, पुलिस आयुक्त और प्रदेश शासन के मुख्य सचिव की तरफ से डीजीसी सिविल महेंद्र प्रसाद पांडेय ने दलील रखी। कहा कि अदालत ने जो भी पूर्व में आदेश दिया वो सम्यक रूप से पालन किया गया। चाहें वो सर्वे कराने का आदेश हो या वजू स्थल सील करने का। भविष्य में जो भी अग्रेतर आदेश कोर्ट देगी, उसका सम्यक अनुपालन कराने के लिए शासन-प्रशासन प्रतिबद्ध है।