बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह का बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में बंटवारे पर पूर्व कुलपति का दर्द छलका है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी मैं सोचता हूं कि क्या मैंने 2007-08 में बीएचयू के आईटी और आईएमएस को आईआईटी और एम्स का स्टेटस दिलाने का प्रपोजल देकर गलती तो नहीं की…?
इसके पीछे मंशा सिर्फ यही थी कि यह दोनों संस्थान आईटी और आईएमएस अपनी उपलब्धि में किसी से कम नहीं हैं। तो, क्यों न इनके स्टेटस को आईआईटी और एम्स का दर्जा दिलाया जाए। हमारा स्टैंड हमेशा यही रहा कि दोनों सिस्टम बीएचयू के ही अंग रहेंगे। इससे कोई समझौता नहीं किया। इसीलिए आईआईटी का प्रपोजल मेरे समय तक क्लियर नहीं हो सका।
लेकिन, तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर, हेल्थ मिनिस्टर, सचिव एजुकेशन और सचिव हेल्थ ने मेरे साथ मीटिंग में ये बात मान ली कि आईएमएस को एम्स का स्टेटस मिलेगा। जिसका नतीजा था कि फर्स्ट स्टेज में ट्रॉमा सेंटर मिला। आईआईटी लटका रहा, क्योंकि मैं चाहता था कि इसका गवर्नेंस बीएचयू के पास ही रहे। मैं 2008 में चला गया, उसके बाद क्या हुआ सब देख रहें हैं।
जब आईआईटी का बिल पार्लियामेंट में जा रहा था, तब मैंने डॉ. कर्ण सिंह से निवेदन किया। कहा कि बिल में एक लाइन डाल दें कि आईआईटी का गवर्नेंस बीएचयू के पास रहे और ऐसा नहीं हुआ तो इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। उन्होंने कहा यह बाद में करा लिया जाएगा। इस पर मैंने कहा फिर कभी नहीं होगा। एक समय आएगा जब आईआईटी और बीएचयू दो सिस्टम हो जाएंगे। बीच में दीवार बनानी पड़ जाएगी, जो किसी को स्वीकार नहीं होगा। अगर यह संभव नहीं है तो आईटी ही ठीक है, लेकिन प्रेशर इतना था कि जो होना था हो गया। जो कुछ सिक्योरिटी को लेकर हो रहा है, उसको ठीक करने के बहुत सारे तरीके हैं।
दीवार बनाकर कैंपस को बांटने की बात तो सोचना भी नहीं चाहिए। क्या कोई दावा कर सकता है कि दीवार बनाकर ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। बीएचयू को विकृत न किया जाए। कोशिश यह की जाए कि आईआईटी को कैसे बीएचयू के गवर्नेंस में फिर वापस लाया जाए।