सोनांचल में आदिवासी महिलाओं ने तालाब में झाड़ू डूबोकर की इंद्रदेव से प्रार्थना

जुलाई का तीसरा सप्ताह बीत चुका है, लेकिन अब तक पर्याप्त बारिश न होने से धरती की प्यास नहीं बुझ पाई है। नदी, नहर, तालाब में नाममात्र का पानी है। खरीफ फसलों की खेती बुरी तरह प्रभावित है। सूखे की आशंका से सहमे किसान अब बारिश के लिए इंद्रदेव को मनाने में जुट गए हैं। इसके लिए टोटकों का भी सहारा लिया जा रहा है।

सोनांचल की महिलाओं ने सोमवार को झाड़ू डूबो कर बारिश के लिए टोटका किया। म्योरपुर क्षेत्र के झारोकला गांव की महिलाओं ने झरिया रेलवे पुलिया के पास स्थित तालाब में बढ़नी झाडू डूबोकर इंद्र भगवान से बारिश की मनुहार की। महिलाओं का कहना था कि उनकी फसल सूख रही है और उन्हें सूखे का डर सता रहा है इस वजह से उन्होंने ऐसा किया है।

खेतों में सूख रही धान की नर्सरी

आदिवासी क्षेत्रों में मान्यता है कि तालाब में झाड़ू डूबाकर प्रार्थना करने से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और वर्षा कराते हैं। इससे पहले रविवार को बभनी में करमा नृत्य करते हुए डीह बाबा की पूजा की गई थी। आदिवासी महिला-पुरुषों ने उन्हला कारी बदरिया भला पानी बरसे मेघ, डामर पानी बरसे… आदि गीत गाते हुए नृत्य किया था।बता दें कि बारिश न होने से खेतों में डाली गई धान की नर्सरी सूख रही है। किसान अब तक धान की रोपाई भी नहीं कर पाए हैं। पिछले साल भी पर्याप्त बारिश न होने से धान की खेती पर असर पड़ा था। इस बार फिर वैसे हालात बनने से चिंता गहराने लगी है।

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