अखिलेश यादव ने अपनी अगली राजनीतिक पारी को लेकर बेहद साफ संदेश दे दिया है। वे पूरी तरह यूपी की सियासत में अपने पांव जमाएंगे, और यूपी की राजनीति के सहारे ही पार्टी को आगे बढाने की रणनीति पर काम करेंगे। उन्होंने आज़मगढ़ लोकसभा सीट की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और से करहल विधानसभा से विधायक बने रहेंगे। पार्टी अभी से 2024 की चुनावी तैयारियों में जुटेगी और अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश करेगी। इसे पार्टी की यूपी विधानसभा चुनाव में मिली हार से मिला सबक बताया जा रहा है।
दरअसल, समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में तेजी से आगे बढ़ रही थी और एक समय पर यह माना जा रहा था कि वह यूपी चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर सरकार बनाने में सफल रहेगी। लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले बड़ी बढ़त हासिल करने के बाद भी सत्ता से काफी दूर ठिठक गई। पार्टी का अनुमान है कि यदि समय रहते उसने कुछ और बेहतर तैयारी की होती तो इस चुनाव का परिणाम कुछ और हो सकता था।
50 सीटें और जीत सकती थी सपा!
समाजवादी पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने अमर उजाला को बताया कि पार्टी की अंदरूनी रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हुई है कि कम से कम 50 सीटें पार्टी और जीत सकती थी, जो बेहद कम वोटों के अंतर से पार्टी से छिटक गई हैं। लगभग 120 सीटें समाजवादी पार्टी ने पांच हजार से भी कम वोटों के अंतर से गंवाई हैं। नेता के मुताबिक, यह बहुत मामूली अंतर है जिसे थोड़े से अतिरिक्त परिश्रम के साथ पाटा जा सकता था। यदि हमने ऐसा किया होता तो आज उत्तर प्रदेश में हमारी सरकार बन चुकी होती।
पार्टी के लंबी दूरगामी रणनीति को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यहीं पर पैर जमाने का फैसला किया है। वे लखनऊ में रहकर जनता के मुद्दे गंभीरता के साथ उठाएंगे और सरकार को उसकी कमियों पर घेरेंगे। पार्टी नेता के मुताबिक अभी से 2024 की तैयारियों में जुटे रहने का संकल्प लिया गया है। सभी लोकसभा क्षेत्रों के मुताबिक रणनीति तैयार कर अभी से भाजपा को बेहतर चुनौती देने की कोशिश की जाएगी।
मुलायम ने भी ऐसे तैयार की थी अपनी भूमिका
यूपी में पार्टी की मजबूती से अखिलेश यादव देश की राष्ट्रीय राजनीति में भी अपने लिए महत्वपूर्ण भूमिका की उपयोगिता साबित कर सकेंगे। उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी स्थानीय मजबूत राजनीतिक पारी के सहारे ही राष्ट्रीय भूमिका हासिल की थी। वे देश के रक्षा मंत्री तक बनने में सफल रहे थे। एक समय समाजवादी पार्टी के लोग उन्हें देश के प्रधानमंत्री के प्रमुख दावेदारों में से एक के रूप में देखने लगे थे।
हाल ही में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति की संभावनाएं भी उनकी जमीनी राजनीति में मजबूत होने के बाद ही उभरती दिख रही है। इन नेताओं की तरह अखिलेश यादव के लिए भी राष्ट्रीय राजनीति में एक बेहतर संभावना तभी बनेगी, जब वह अपनी जमीनी राजनीति में ज्यादा ताकतवर साबित होंगे। फिलहाल, लगता है कि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेते हुए यूपी की सियासत में ही अपने पांव मजबूत करने का फैसला ले लिया है।