ईरान और उसके प्रॉक्सी की विचारधारा का आधार इज़राइल राज्य पर अतिक्रमण और उसका विनाश करना है। इसके लिए ईरान अनेक आतंकी संगठनों की मदद करता है। इस कारण इज़राइल ने शुक्रवार सुबह 5:30 बजे ईरानी परमाणु और कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया था। इसमें 6 परमाणु वैज्ञानिक और 20 से ज़्यादा सैन्य कमांडर मारे गए थे। इज़राइल ने लगातार दूसरे दिन ईरान पर एयरस्ट्राइक की। इज़राइली फाइटर जेट्स ने शुक्रवार देर रात ईरान के परमाणु ठिकानों को दोबारा निशाना बनाया।
इज़राइली हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को ईरान को बड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि “इससे पहले कि कुछ भी न बचे, परमाणु समझौता कर लो।” फॉक्स न्यूज़ के मुताबिक, ट्रंप ने कहा कि यदि ईरान जवाबी कार्रवाई करता है, तो अमेरिका अपनी और इज़राइल की रक्षा के लिए तैयार है। ईरान और उसके प्रॉक्सी की विचारधारा का आधार इज़राइल राज्य पर अतिक्रमण और विनाश है।
अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज़ के मुताबिक, एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने बताया है कि अमेरिकी सेना ईरानी मिसाइलों को मार गिराने में इज़राइल की मदद कर रही है। पूर्वी भूमध्य सागर में अमेरिकी नौसेना के दो वॉरशिप तैनात हैं।
ईरान द्वारा सहायता प्राप्त हमास ने गाज़ा से इज़राइल के खिलाफ कई युद्ध छेड़े, जिनमें रॉकेट, ड्रोन और धन का इस्तेमाल किया गया, और 7 अक्टूबर, 2023 का सबसे विनाशकारी हमला शामिल था। उस सुबह, हमास ने 20 से अधिक इज़राइली समुदायों पर एक क्रूर हमला किया था, जिसमें 30 अमेरिकियों सहित 1,200 से अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी और 250 से अधिक लोगों को गाज़ा में बंधक बना लिया गया था।
ईरान ने फिलिस्तीन में हमास को, लेबनान में हिज़्बुल्लाह को लंबे समय से वित्तीय सहायता देकर वैश्विक सुरक्षा के लिए एक जटिल चुनौती पेश की है। वर्ष 1979 में ईरान की धार्मिक क्रांति के समय जैसे ही वहां के शासक शाह रज़ा पहलवी का पतन हुआ, ईरान पूरी तरह बदल चुका था।
ईरान मानता है कि इज़राइल ने फिलिस्तीन पर जबरन कब्ज़ा किया है और उसे खत्म कर देना चाहिए। वहीं इज़राइल, जो यहूदी राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है, ईरान को सबसे बड़ा खतरा मानता है। इज़राइल के लिए यह केवल सुरक्षा की लड़ाई नहीं है, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है, और ईरान के लिए यह केवल धार्मिक मामला नहीं, बल्कि वर्चस्व की जंग है।
इज़राइल की सबसे बड़ी चिंता ईरान का परमाणु कार्यक्रम है। इज़राइल का सुरक्षा सिद्धांत स्पष्ट है — “कोई भी दुश्मन देश परमाणु हथियार न बनाए।” इसी सिद्धांत के तहत इज़राइल पहले इराक और फिर सीरिया के न्यूक्लियर रिएक्टर नष्ट कर चुका है, और अब नंबर ईरान का है।
इज़राइल उन देशों में शुमार है, जिनकी सीमाएं चौतरफा दुश्मन देशों से घिरी हैं। एक पड़ोसी भी ऐसा नहीं है, जिससे इज़राइल की दोस्ती हो। चौतरफा इस्लामिक देशों से घिरा यह यहूदी देश अगर जंग न करे, तो खुद खत्म हो जाएगा। इज़राइल का प्रतिरोध ही उसकी ताकत है।
इज़राइल की आबादी 1 करोड़ से भी कम है। 2025 की जनगणना के मुताबिक, इज़राइल की आबादी करीब 95 लाख है। जितनी आबादी दिल्ली की है, उससे भी कम आबादी वाले इस देश की ताकत, यहां की सेना है। साल 1948 में अपनी स्थापना के बाद से ही इज़राइल और अरब देशों में संघर्ष होता रहा है, जिससे यह दुश्मनी लगातार बढ़ती गई।
इज़राइल और मुख्यतः यरुशलम बहुत सदियों से यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल रहा है, लेकिन इस्लामिक आक्रांताओं ने उसे छीन लिया था और यहूदियों को वहाँ से खदेड़ दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन्होंने यरुशलम पर दोबारा कब्ज़ा किया और इज़राइल एक बार फिर दुनिया के नक्शे पर आया।
अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन