भारत को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के लिए जीएम सरसों को मिले फील्ड ट्रायल का अवसर : अशोक बालियान


पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन ने डॉ. दीपक पेंटल से की मुलाकात, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रखे तथ्य

नई दिल्ली। पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन अशोक बालियान ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और जेनेटिक्स विशेषज्ञ डॉ. दीपक पेंटल तथा उनकी सहयोगी डॉ. विभा गुप्ता से मुलाकात कर जीएम सरसों (डीएमएच-11) से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।

डॉ. पेंटल ने बताया कि जीएम सरसों डीएमएच-11 को वैज्ञानिक पद्धति से विकसित किया गया है और यह फसल पारंपरिक किस्मों की तुलना में लगभग 30% अधिक उपज देने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि जीएम विरोधी तर्क वैज्ञानिक आधार से रहित और भ्रामक हैं। भारत अपनी खाद्य तेल की जरूरतों का 57% हिस्सा आयात करता है, ऐसे में जीएम सरसों आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।

क्या है जीएम सरसों डीएमएच-11?
डीएमएच-11 सरसों एक ट्रांसजेनिक फसल है जिसे हर्बिसाइड टॉलरेंट तकनीक से विकसित किया गया है। इसमें बारनेज, बारस्टार और बार नामक तीन ट्रांसजीन होते हैं जो उच्च गुणवत्ता वाले संकर बीज उत्पादन में सहायक होते हैं। यह सरसों कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में पहले से सफलतापूर्वक उगाई जा रही रेपसीड प्रजातियों पर आधारित है।

केंद्र सरकार का पक्ष और सुप्रीम कोर्ट में मामला
अक्टूबर 2022 में GEAC ने सीमित अवधि के लिए जीएम सरसों को पर्यावरणीय रूप से जारी करने की मंजूरी दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर 2022 को उस पर अंतरिम रोक लगा दी। यह मामला फिलहाल जीन कैंपेन बनाम भारत संघ 2024 के रूप में न्यायालय में लंबित है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि वैज्ञानिक सुरक्षा मानकों का पालन किया गया है।

वैज्ञानिकों की राय
आईसीएआर, आईएआरआई, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और कई अनुसंधान संस्थानों ने विभिन्न फील्ड ट्रायल में यह पाया कि जीएम सरसों मधुमक्खियों व अन्य परागणकर्ताओं के लिए सुरक्षित है और इसका स्वास्थ्य या पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है। GEAC द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने भी इसकी पुष्टि की है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
विश्व के कई देश जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील आदि वर्षों से जीएम फसलों का प्रयोग कर रहे हैं। हाल ही में यूरोपीय आयोग ने भी तीन जीएम मक्का किस्मों को मानव व पशु खाद्य के लिए स्वीकृति दी है।

अशोक बालियान ने कहा कि देश के कृषि वैज्ञानिकों और संस्थानों द्वारा सुझाए गए परीक्षणों और सुरक्षा मानकों को देखते हुए, जीएम सरसों को फील्ड ट्रायल का मौका दिया जाना चाहिए। इससे किसानों की आय बढ़ेगी, खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता घटेगी और भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा सकेगा।

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