मुजफ्फरनगर। केंद्र सरकार के बजट को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने निराशाजनक बताया है। उनका कहना है कि एक बार फिर बजट में किसानों के हाथ खाली हैं। इसमें न तो एमएसपी गारंटी कानून का जिक्र है और नहीं कर्जमाफी का। यह कागजी बजट है, जो किसान और मजदूर तक नहीं पहुंच सकता है।
किसानों के हिस्से में 1.52 लाख करोड़
राकेश टिकैत का कहना है कि ग्रामीण परिवेश का किसान व मजदूर वर्ग बजट से अनेकों आशाएं लिए बैठा था, लेकिन किसानों के हाथ खाली ही रह गए। बजट का कुल आकार 48 लाख करोड़ रुपये है। देश की अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत धुरी और देश को कृषि प्रधान कहलाने का दर्जा देने वाले कृषकों के हिस्से में 1.52 लाख करोड़ रुपये ही आए हैं।
इससे तो यह प्रतीत होता है कि 65 प्रतिशत किसानों की आबादी को सरकार ने सिर्फ तीन प्रतिशत बजट में ही सीमित कर दिया है। ये ग्रामीण भारत के लिए सबसे बड़ा भेदभाव है।
एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहा किसान
देश का किसान कमेरा वर्ग कई वर्षों से आंदोलनों के माध्यम से एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहा है। अगर फसल बेचने के समय दाम की गारंटी होगी तो किसान उत्पादकता स्वयं बढ़ा देगा, लेकिन सरकार एमएसपी को गारंटी कानून का दर्जा नहीं देना चाहती है।
उन्होंने कहा कि संपूर्ण कर्जमाफी, कृषि उपकरणों से जीएसटी खत्म करने, बिजली कानून व प्रत्येक किसान परिवार को 10 हजार रुपये प्रति माह पेंशन देने की मांग का भी बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
सरकार उत्पादकता बढ़ाने के नाम पर बड़ी कंपनियों को बीज बनाने के नाम से खेती में लेकर आना चाहती है। इसीलिए सरकार ने भारत में आयात करने वाली कंपनियों पर पांच प्रतिशत तक का कर घटा दिया है।
इसी से स्पष्ट होता है कि कॉरपोरेट को छूट देकर ग्रामीण परिवेश को लूटने की एक नई योजना का निर्माण सरकार द्वारा बजट में किया गया है। यह बजट सिर्फ कागजी आंकड़ा है, जो किसान व मजदूर तक नहीं पहुंच सकता है।