पुलिस की कमजोर विवेचना और वादी के बयान से सपा नेता आजम खां के खिलाफ नफरती भाषण देने के मामले में निचली अदालत (एमपी-एमएलए कोर्ट मजिस्ट्रेट ट्रायल) का फैसला सेशन कोर्ट में नहीं टिक सका। मुकदमे के वादी अनिल चौहान ने कोर्ट में बयान दिया था कि तत्कालीन जिला निर्वाचन अधिकारी के दबाव में उन्होंने तहरीर लिखवाई थी।
सपा नेता आजम खां 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी थे। उन्होंने 07 अप्रैल 2019 को मिलक के खाता नगरिया में चुनावी सभा को संबोधित किया था, जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था। वीडियो वायरल होने के बाद वीडियो अवलोकन टीम के प्रभारी अनिल कुमार चौहान ने मिलक कोतवाली में आईपीसी की धारा 153-ए, 505-बी और 125 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी। 27 अक्टूबर 2022 को एमपी एमएलए कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) ने आजम खां को दोषी करार देते हुए तीन वर्ष का कारावास और छह हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आजम खां ने सेशन कोर्ट में अपील की थी। 24 मई को सेशन कोर्ट ने आजम खां के उपर लगाए गए नफरती भाषण के आरोप से बरी करते हुए निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया था।
अपील की सुनवाई के दौरान आजम खां के अधिवक्ताओं ने तर्क प्रस्तुत किया कि निचली अदालत ने मुल्जिम को दोषसिद्ध करते हुए आग्राह्य साक्ष्य को संज्ञान में लिया है। पत्रावली पर सारा मामला कथित भाषण की वीडियोग्राफी पर आधारित है लेकिन ऐसी कोई वीडियोग्राफी कानूनी रूप से साबित नहीं की गई है। मुकदमे के वादी और वीडियो अवलोकन टीम के प्रभारी अनिल चौहान ने कोर्ट में कहा था कि उसने तहरीर तत्कालीन जिला निर्वाचन अधिकारी आंजनेय कुमार सिंह के दबाव में लिखवाई थी। विवेचना करने वाले दरोगा ने उनके सादे कागज पर हस्ताक्षर कराए थे। तहरीर पर कोई दिनांक अंकित नहीं था और तहरीर तैयार कराते समय तत्कालीन जिला निर्वाचन अधिकारी वहां मौजूद थे। विवेचक ने तहरीर लेखक का कोई बयान नहीं लिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तहरीर तत्काल तैयार की गई थी। वीडियोग्राफी करने वाले गवाह चंद्रपाल ने कोर्ट में अपने बयान में बताया था कि सीडी बनाकर एनआईसी में जमा की थी। दूसरे गवाह योगेंद्र कुमार ने अपने बयान में कहा कि सीडी उसके और अनिल चौहान के द्वारा बनवाई गई और एनआईसी में जमा कराई गई। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तीनों गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और उनकी बातों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने फैसले में अभिव्यक्ति की आजादी का दिया हवाला
सपा नेता आजम खां के नफरती भाषण से बरी करने के मामले में कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 19 का भी जिक्र किया है जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लेख है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आजम खां ने यदि कोई आपत्तिजनक बात कही थी तो उसके लिए पीड़ित पक्ष सिविल या फौजदारी कार्रवाई के लिए अलग से वाद दायर सकता था।
हम कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रहे हैं और उसके बाद हाईकोर्ट में अपील सरकार की ओर से दायर की जाएगी। -प्रताप सिंह मौर्या, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी
इस मामले में हमारी लीगल टीम मंथन कर रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ही कुछ कर सकती है। अभी हम इस बारे में ज्यादा से ज्यादा लीगल प्वाइंट की जानकारी जुटा रहे हैं। -जुबैर अहमद खां, आजम खां के अधिवक्ता