गाजियाबाद में आरएसएस-भाजपा की हुई समन्वय बैठक, सीएम योगी भी हुए शामिल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व की बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ गाजियाबाद में बैठक हुई. यह बैठक गाजियाबाद के नेहरू नगर में स्थित सरस्वती विद्या मंदिर हुई. साढ़े 4 घंटे से अधिक समय तक सीएम योगी बैठक में मौजूद रहे.

बैठक में संघ की कई अनुसांगिक संगठन के पदाधिकारी और नेता भी मौजूद रहे. गाजियाबाद में RSS-BJP की समन्वय बैठक में शामिल होने सीएम योगी के पहुंचे थे. बैठक में संघ के बड़े पदाधिकारी और बीजेपी के नेता मौजूद रहे. बैठक में RSS के मेरठ और ब्रज क्षेत्र के पदाधिकारी शामिल रहे. बैठक में यूपी बीजेपी चीफ भूपेंद्र चौधरी भी मौजूद रहे.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार इस समन्वय बैठक में पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष पर चर्चा हुई है, जिसके लिए प्रदेश भाजपा ने प्रक्रिया पूरी कर ली है. इस प्रक्रिया में पार्टी के जिला अध्यक्षों का चुनाव शामिल है.

14 अप्रैल को धूमधाम से मनाई जाएगी आंबेडकर जंयती

संघ की बैठक में यह महत्वपूर्ण सुझाव दिया गया कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के पूरे नाम “भीमराव रामजी आंबेडकर” का ही उपयोग किया जाए. संघ का मानना है कि रामजी शब्द को षड्यंत्रपूर्वक उनके नाम से हटा दिया गया था, जबकि उन्होंने संविधान पर अपने पूरे नाम से हस्ताक्षर किए थे.

बैठक में यह प्रस्ताव भी रखा गया कि अंबेडकर के नाम से पहले “आदरणीय”, “परम आदरणीय” या “पूजनीय” जैसे सम्मानजनक शब्दों का उपयोग किया जाना चाहिए. साथ ही, यह सवाल भी उठाया गया कि उनकी तस्वीरों में हमेशा नीला रंग ही क्यों दिखाया जाता है और क्या अन्य रंगों का प्रयोग संभव नहीं है. संघ ने इस पर विचार करते हुए अंबेडकर की छवियों में विविधता लाने की बात कही.

इसके अलावा, 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती को पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया गया. इस वर्ष, कार्यक्रमों में उनकी अलग-अलग छवियों और उनके संपूर्ण नाम के साथ उनके योगदान को विशेष रूप से सम्मानित किया जाएगा,

इस बैठक में संघ के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के कई प्रमुख पदाधिकारी मौजूद थे, जिनमें 6 राष्ट्रीय और 50 प्रदेश स्तरीय अधिकारी शामिल थे. साथ ही, 36 अनुषांगिक संगठनों के प्रतिनिधि भी इस चर्चा का हिस्सा बने.

2024 के चुनाव के बाद आरएसएस और बीजेपी की बीच अहम बैठक

उत्तर प्रदेश में लगातार चार चुनावी जीतों- 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017, 2022 के विधानसभा चुनावों में- भाजपा ने अपनी जातिगत छत्रछाया- मोटे तौर पर गैर-जाटव दलित, गैर-यादव ओबीसी और उच्च जातियों को बरकरार रखते हुए मुसलमानों को छोड़कर सबसे विविध प्रतिनिधित्व हासिल किया.

2024 के लोकसभा चुनाव में, सपा का पीडीए फॉर्मूलेशन ओबीसी और दलितों के एक बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने में सफल रहा, जिससे भाजपा को करारा झटका लगा था.

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटों की संख्या 2019 के 62 से घटकर पिछले लोकसभा चुनाव में 33 रह गई. सूत्रों के मुताबिक, अगले कुछ दिनों में राज्य भाजपा को नया अध्यक्ष मिलने की संभावना है.

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