चंदौसी में बांके बिहारी मंदिर के बाद मिली बावड़ी, संभल में एएसआई सर्वे के बीच खोदाई शुरू

चंदौसी के मुस्लिम बहुल मोहल्ले लक्ष्मण गंज में खंडहरनुमा प्राचीन बांके बिहारी मंदिर मिलने के बाद अब एक खाली प्लॉट में बावड़ी मिली है। सनातन सेवक संघ के पदाधिकारियों की मांग पर डीएम के आदेश पर एडीएम न्यायिक और तहसीलदार ने शनिवार की दोपहर को जेसीबी से खोदाई शुरू करा दी।

खोदाई में बावड़ी की दीवारें नजर आईं। रात होने पर खोदाई रोक दी गई है। मोहल्ला लक्ष्मण गंज में 17 दिसंबर को खंडहरनुमा प्राचीन बांके बिहारी मंदिर मिला था। सनातन सेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख कौशल किशोर वंदेमातरम ने शनिवार को संपूर्ण समाधान दिवस में डीएम राजेंद्र पैंसिया को पत्र दिया।

जिसमें लक्ष्मण गंज में मंदिर के अलावा बावड़ी होने का दावा करते हुए उसके सौंदर्यीकरण की मांग की। डीएम ने एडीएम न्यायिक सतीश कुमार कुशवाहा और तहसीलदार धीरेंद्र प्रताप सिंह को खोदाई कराने के आदेश दिए।

शाम करीब साढ़े चार बजे एडीएम, तहसीलदार, लेखपाल और पालिका की टीम दो जेसीबी के साथ लक्षमण गंज पहुंचे और आबादी के बीच खाली पड़े प्लाॅट में बावड़ी की तलाश में खोदाई शुरू कराई। करीब पौन घंटे खोदाई करने के बाद बावड़ी की दीवारें नजर आने लगीं। शाम छह बजे अंधेरा होने पर खोदाई रोक दी गई। अब रविवार को खोदाई होगी।

रानी सुरेंद्रबाला के दौर की बताई जाती है बावड़ी

इलाके के लोगों का कहना है कि इस बावड़ी का निर्माण 1857 में बिलारी की रानी सुरेंद्रबाला ने कराया था। बताया जाता है कि इस प्राचीन बावड़ी के पास कुछ कमरों का निर्माण भी कराया गया था। एक कुआं भी था। बाद में इस जगह को स्व. लल्लाबाबू ने ले लिया। फिर उनके द्वारा भी बेच दी गई।

इसके बाद इस स्थान पर प्लॉटिंग की गई। मोहल्ले के बुजुर्ग मास्टर आकिल ने बताया कि प्लाॅटिंग के दौरान यहां पर बावड़ी थी। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि बावड़ी या कुआं बेचा नहीं जाता है। इस पर एक प्लाॅट के बराबर जगह पार्क के लिए छोड़ दी। जिसे मिट्टी डालकर पाट दिया और पार्क का रूप दे दिया गया।

पुराने दौर में पानी का स्रोत होती थी बावड़ी

पुराने दौर में नदियों के अलावा कुएं, तालाब औरबावड़ी पानी का बड़ा स्रोत होते थे। पुराने भवनों में आज भी बावड़ी देखने को मिल जाती हैं।

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