ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी की पूजा 1993 में रोकी गई थी, हाईकोर्ट में मंदिर पक्ष का दावा

वाराणसी ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी पूजा अनुमति के खिलाफ याचिका की सुनवाई जारी है। सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। शुक्त्रस्वार को भी सुनवाई होगी। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की याचिका की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जे जे मुनीर कर रहे हैं।

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन की  बहस जारी है। इनका कहना है कि जिला प्रशासन ने 1993 में आजादी से पहले से चली आ रही श्रृंगार गौरी की पूजा रोक दी। कानून में पूजा का अधिकार सिविल अधिकार है। जिसकी सुनवाई करने का सिविल कोर्ट को अधिकार है। हिंदू विधि के अनुसार मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित रहता है। मूर्ति एक विधिक व्यक्ति हैं। जिसे अपने अधिकार की रक्षा के लिए वाद दायर करने का अधिकार है।

जैन ने कहा काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास एक्ट के तहत ज्ञानवापी परिसर पर स्वामित्व मंदिर का है। ज्ञानवापी एक मोहल्ला है। ज्ञानवापी नाम की कोई मस्जिद नहीं है। आलमगीर मस्जिद ज्ञानवापी से तीन किलोमीटर दूर बतायी जाती है। विवादित मस्जिद को आलमगीर मस्जिद का नाम दिया गया है। मंदिर की जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करना गैर कानूनी है।

जैन ने यह भी कहा श्रृंगार गौरी की पूजा आजादी से पहले से होती आ रही है। प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव पर रोक लगाता है। शासन ने पूछा बिना विधिक अधिकार के रोक दी है। पूजा की अनुमति मिलने से धार्मिक स्थल की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं होगा।अपर महाधिवक्ता एम सी चतुर्वेदी ने कहा कि वह पता लगा रहे हैं कि 1993 में पूजा रोकने का आदेश लिखित है या नहीं। जिसकी जानकारी कोर्ट को दी जाएगी।

मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी का कहना है कि श्रृंगार गौरी की साल में एक दिन पूजा होती रही है। उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। सिविल वाद चतुराई से मस्जिद के भीतर पूजा की इजाजत लेने के लिए दाखिल किया गया है, जो प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ  है। सुनवाई जारी है।

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