उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की साम्प्रदायिक हिंसा मामले में जांच को संवेदनहीन और हास्यास्पद करार देते हुए अदालत ने दिल्ली पुलिस पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने निर्देश दिया है कि जुर्माने की राशि भजनपुरा थाने के प्रभारी और अधीनस्थ निरीक्षण अधिकारियों से वसूली जाए क्योंकि वे अपना संवैधानिक दायित्व निभाने में बुरी तरह से विफल रहे।
पेश मामले में पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें दंगों के दौरान गोली लगने से अपनी बाईं आंख गंवाने वाले मोहम्मद नासिर नामक व्यक्ति की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। इस मामले की जांच करने वाली दिल्ली पुलिस की तरफ से कहा गया कि अलग से प्राथमिकी दर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पुलिस ने पूर्व में ही प्राथमिकी दर्ज कर ली थी। साथ ही यह भी कहा कि कथित तौर पर गोली मारने वाले लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। बताया कि घटना के समय वे दिल्ली में नहीं थे।
इस पर सत्र न्यायाधीश ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि जांच प्रभावशाली और निष्पक्ष नहीं है। यह बहुत ही लापरवाह, संवेदनहीन और हास्यास्पद तरीके से की गई है। सत्र अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस आदेश की एक प्रति दिल्ली पुलिस आयुक्त को भेजी गई है, ताकि मामले में जांच और निरीक्षण के स्तर को संज्ञान में लाया जा सके और उचित कार्रवाई की जा सके।
वहीं अदालत ने पीड़ित के पक्ष में टिप्पणी करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता मोहम्मद नासिर अपनी शिकायत के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कानून के अनुरूप अपने पास उपलब्ध उपाय का सहारा लेने को स्वतंत्र हैं। वह दोबारा कानून के हिसाब से अपने हक में निर्णय के लिए आगे के रास्ते अपना सकता है।
दरअसल इस मामले मेंं पुलिस का जांच के बाद इस तरह का जवाब अदालत का अखरा। जिसमें एक ऐसे व्यक्ति की पीड़ा को नजरअंदाज किया गया, जिसकी गोली लगने से आंख ही चली गई। जबकि आरोपियों के लिए प्राथमिक स्तर पर ही पुलिस के पास स्पष्टीकरण देने के लिए बहुत कुछ था। अदाालत ने पुलिस के इस रवैये को संवेदनहीन व हास्यपद पर करार दिया है। दरअसल यह घटना गत वर्ष 23 से 26 फरवरी के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान घटित हुई थी।