भारत ने स्वदेशी हल्के टैंक ‘ज़ोरावर’ का प्रारंभिक परीक्षण किया

भारतीय सेना के लिए अच्छी खबर है। हाई एल्टीट्यूड इलाकों के लिए लंबे समय से सेना में हल्के टैंकों की जरूरत महसूस की जा रही थी। जल्द ही वह वक्त आएगा जब लाइट वेट टैंक जोरावर (Zorawar) भारतीय सेना में शामिल हो जाएंगे। साल 2020 में में चीन के साथ गलवान में हुई खूनी भिड़ंत के बाद भारतीय सेना को ऊंचे पहाड़ी इलाकों के लिए लाइट टैंक की आवश्यकता थी। उस समय चीन ने अपने कब्जे वाले तिब्बत से सटे लद्दाख बॉर्डर पर ZTQ टी-15 लाइट टैंक तैनात कर दिए थे। जिसके बाद भारत को भी ऐसे हल्के टैंक चाहिए थे। लेकिन भारत को टी-72 जैसे भारी टैंक तैनात करने पड़े थे। भारतीय सेना ने करीब 200 टैंकों को हवाई मार्ग से लद्दाख पहुंचाया था। 

जोरावर को रिकॉर्ड दो सालों में तैयार किया
शनिवार को डीआरडीओ ने गुजरात के हजीरा में अपने लाइट बैटल टैंक जोरावर एलटी (Zorawar Tank) की झलक दिखाई। डीआरडीओ ने इस टैंक को लार्सन एंड टूब्रो के साथ मिल कर तैयार किया है। वहीं, शनिवार को डीआरडीओ के चीफ डॉ. समीर वी कामत ने इस टैंक का जायजा लिया। खास बात यह है कि इस टैंक को रिकॉर्ड दो सालों में तैयार किया गया है। जल्द ही लद्दाख में इसके ट्रायल शुरू किए जाएंगे, जिनके अगले 12-18 महीनों में पूरा होने की उम्मीद है। खास बात यह है कि भारत अब डिफेंस इक्विमेंट्स के मामले में आत्मनिर्भर हो रहा है। भारत अब अपने रक्षा उपकरण खुद बना रहा है। डीआरडीओ प्रमुख डॉ. कामत ने उम्मीद जताई कि सभी परीक्षणों के बाद इस टैंक को वर्ष 2027 तक भारतीय सेना में शामिल किए जा सकता है। 

दौलत बेग ओल्डी में फंस गया था टी-72 टैंक 
अभी हाल में पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी में सासेर ब्रांगसा इलाके में नदी में टैंक अभ्यास के दौरान रूसी टी-72 टैंक रात में नदी पार कर रहा था। श्योक नदी में अचानक जल स्तर बढ़ने के कारण वह टैंक फंस गया, जिसमें जेसीओ समेत पांच जवान शहीद हो गए थे। उस हादसे के बाद सैन्य हलकों में सवाल उठाए जा रहे थे कि हाई एल्टीट्यूड इलाके में टी-72 जैसे भारी टैंकों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। सेना को जल्द से जल्द हल्के टैंक लाने चाहिए। वहीं, जोरावर अपने हल्के वजन और एंफीबियस क्षमताओं के चलते यह टैंक भारी वजन वाले टी-72 और टी-90 टैंकों की तुलना में अधिक आसानी से पहाड़ों की खड़ी चढ़ाई और नदियों और नालों को पार कर सकता है। एलएंडटी के कार्यकारी उपाध्यक्ष अरुण रामचंदानी ने कहा कि एलटी के साथ विकसित इस मॉडल ने बड़ी सफलता हासिल की है और इसे बहुत कम समय में तैयार किया गया है। वहीं यह टैंक चीनी सेना का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना की आवश्यकताओं को पूरा करता है। 

ज़ोरावर का वजन मात्र 25 टन
जोरावर लाइट वेट टैंक है, जिसे भारतीय सेना को लद्दाख जैसे हाई एल्टीट्यूड इलाकों में बेहतर क्षमता प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका वजन सिर्फ़ 25 टन है, जो टी-90 जैसे भारी टैंकों के वजन का आधा है, जिससे यह मुश्किल पहाड़ी इलाकों में काम कर सकता है, जहां बड़े टैंक नहीं पहुंच सकते। इसका नाम 19वीं सदी के डोगरा जनरल ज़ोरावर सिंह के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया था। ज़ोरावर को हल्का, चलने में आसान और हवा से परिवहन योग्य बनाया गया है, जबकि इसमें पर्याप्त मारक क्षमता, सुरक्षा, निगरानी और संचार क्षमताएं भी हैं। भारतीय सेना ने शुरुआत में केवल 59 जोरावर टैंकों का ऑर्डर दिया है। बाद में 295 अतिरिक्त टैंक खरीदे जाएंगे। जोरावर चीन के मौजूदा हल्के पहाड़ी टैंकों, जैसे ZTQ टाइप-15 का मुकाबला करेगा। 

जोरावर टैंक की खूबियां

  • जोरावर में 105 मिमी या उससे अधिक कैलिबर की गन लगी है, जिससे एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल दागीं जा सकती हैं। 
  • इसमें मॉड्यूलर एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर और एक एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम लगा है, जो इसे हमलों से सुरक्षित रखता है। 
  • बेहतर मोबिलिटी के लिए इसमें कम से कम 30 एचपी/टन का पावर-टू-वेट रखा गया है। 
  • इसके अलावा, इसमें ड्रोन लगाए गए हैं, साथ ही बैटल मैनेजमेंट सिस्टम भी लगाया गया है।  

14,000 फुट पर बेहतरीन काम करते हैं चीनी टैंक
रूसी मूल के भारतीय टी-72 टैंकों को 17,500 फुट ऊंचे दर्रों पर ले जाने में दिक्कत होती है। जबकि चीन के ZTQ-15 हल्के टैंक, जिनका वजन सिर्फ 33 टन (अतिरिक्त स्लैप-ऑन कवच के साथ 36 टन) है, 14,000 फुट ऊंची घाटियों में आसानी से काम करते हैं। ZTQ-15 1,000 हॉर्स पावर, नोरिन्को इंजन, 30 एचपी प्रति टन से अधिक का पावर-टू-वेट रेशियो पैदा करते हैं, जो ऑक्सीजन की कमी वाले ऊंचे इलाकों के लिए पर्याप्त है। इसके विपरीत, भारत के 42 टन के T-72, अपने कम शक्ति वाले 780 एचपी इंजनों के साथ, सिर्फ 18.5 एचपी प्रति टन का पावर-टू-वेट रेशियो पैदा करते हैं। लद्दाख की संकरी सड़कों और छोटे पुलों के कारण बड़े टी-72 को ऑपरेट करना और भी कठिन हो जाता है। 

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