जस्टिस पर्वत राव का निधन, कभी केंद्र ने आरएसएस में होने के नाते नहीं बनने दिया था जज

अविभाजित आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस एस पर्वत राव गारु का कल बुधवार को निधन हो गया. वह 90 साल के थे. राव पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से भी नाता रहा. वह आरएसएस के पूर्व क्षेत्र संघचालक भी रहे हैं. उन्होंने अपने 9 दशक लंबे जीवन में उच्चतम नैतिक मूल्यों का पालन किया और कई अन्य लोगों को इसके लिए प्रेरित किया.

मार्च 1990 में पर्वत राव हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए और 1997 में वह रिटायर हो गए. वह अपने कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं. जस्टिस राव ने अपने एक फैसले में कहा था कि Eamcet में शामिल होने वाले छात्रों को अपनी उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का अधिकार है. उनके निधन पर देश के पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और अन्य लोगों ने अपनी श्रद्धांजलि दी.

साल 1935 में जन्मे पर्वत राव बचपन से ही मेधावी छात्र थे. उन्होंने विजयवाड़ा में अपनी स्कूली शिक्षा और इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. फिर उन्होंने मद्रास लोयोला कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की. इसके बाद वह इंग्लैंड चले गए. 1954 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भौतिकी, राजनीति और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. ​​स्वदेश लौटने के बाद, उन्होंने मद्रास से अपनी लॉ की डिग्री भी पूरी की और हैदराबाद में दुव्वुरी नरसाराजू के साथ अपनी वकालत यात्रा की शुरुआत की. साल 1961 से उन्होंने स्वतंत्र रूप से वकालत शुरू कर दी.

केंद्र सरकार ने नहीं बनने दिया था जज

जस्टिस पर्वत राव एक उच्च कोटि के बुद्धिजीवी थे. उन्होंने वकालत के इतर मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे विविध विषयों का भी अध्ययन किया था. उन्होंने कॉर्पोरेट लॉ में विशेषज्ञता हासिल की.

हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव की आंध्र प्रदेश सरकार ने पर्वत राव को जस्टिस के रूप में शॉर्टलिस्ट किया और उनके नाम सिफारिश भी की, लेकिन तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री शिवशंकर ने जोर देकर कहा कि पर्वत राव को पहले आरएसएस से खुद को अलग करने का पत्र पेश करना होगा, जिसमें वे एक जिम्मेदारी संभाल रहे थे. इस पर पर्वत राव ने यह कहते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया कि आरएसएस प्रतिबंधित संगठन नहीं है.

बाद में वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जस्टिस बने. हाई कोर्ट के जस्टिस के रूप में उनकी रिटायरमेंट के बाद, उन्हें राज्य उपभोक्ता फोरम का अध्यक्ष बनाया गया. वह करीब 2 साल तक पद पर रहे. फिर उन्होंने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया कि आंध्र प्रदेश सरकार ने जिला स्तर पर सुविधाएं प्रदान करने को लेकर उनकी सिफारिशों को लागू नहीं किया. बाद में उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा से जुड़ी गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया.

दान करने में भी आगे रहे जस्टिस राव

शुरुआत में पर्वत राव संघ के क्षेत्र संघचालक थे और बाद में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष बने. उन्होंने जीवन भर उच्चतम नैतिक मूल्यों का पालन किया और कई अन्य लोगों को इसके लिए प्रेरित भी किया. बतौर जस्टिस एक बार वह अपने गृह नगर की यात्रा पर थे, जब उन्हें नाश्ते की पेशकश की गई, तो उन्होंने अनुरोध किया और इसका भुगतान भी किया. यही नहीं विरासत में मिली 30 एकड़ जमीन में से उन्होंने 27 एकड़ जमीन गौतमी सेवा समिति, गौ सेवा समिति आदि जैसे कई धर्मार्थ कार्यों के लिए दान कर दी.

इससे पहले 45 साल पूर्व भी उन्होंने अपने पैतृक गांव उंगुटुरु में अपनी जमीन दान कर दी थी. साथ ही डॉ. सुंकवल्ली विज्ञान भारती नामक स्कूल चलाने के लिए BVK को 10 लाख रुपये दान किए. इसके अतिरिक्त करीब 10 साल पहले उन्होंने एक नए स्कूल भवन के निर्माण के लिए एक करोड़ रुपये जुटाए थे. अपने गांव के पास हाईवे के किनारे बची हुई 280 वर्ग गज जमीन पर उन्होंने जैविक गौ उत्पादों के लिए एक केंद्र बनाया.

RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय का शोक संदेश

उनकी शादी श्रीमती लक्ष्मीकांतम गारू से हुई, जिनसे उनकी 3 बेटियां हैं. तीनों उच्च शिक्षित हैं. उन्होंने अपनी पत्नी को उच्चस्तरीय शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया, फिर उन्होंने अपनी मास्टर्स और कानून की डिग्री भी पूरी की.

जस्टिस पर्वत राव के निधन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने शोक संदेश में कहा, “पर्वत राव जी एक समर्पित और अत्यंत प्रबुद्ध कार्यकर्ता थे जो सबके मार्गदर्शक भी रहे. अब उनकी जीवन यात्रा का अंत हो गया. वह सदैव प्रेरणादायी व्यक्तित्व के नाते याद रखे जाएंगे. मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. उनके परिवार के सभी लोगों को मैं अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं. ईश्वर दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें.”

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