बीमा पॉलिसी खरीदते समय अगर कोई अहम जानकारी छिपाई जाती है तो उसका खामियाजा परिवार को भी भुगतना पड़ सकता है। हरियाणा के झज्जर से ऐसा ही मामला सामने आया है, जहाँ बीमाधारक की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को क्लेम नहीं मिला। यह विवाद उपभोक्ता अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, और अंततः शीर्ष अदालत ने जीवन बीमा निगम (LIC) के फैसले को सही ठहराया।
क्या है पूरा मामला
झज्जर निवासी महिपाल सिंह ने 28 मार्च 2013 को एलआईसी का जीवन आरोग्य हेल्थ प्लान लिया था। आवेदन पत्र में उन्होंने स्वयं को पूरी तरह नशामुक्त बताया था। लेकिन जून 2014 में पेट दर्द और उल्टियों की शिकायत के बाद लंबी बीमारी झेलने के उपरांत उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट से हो गई। बाद में मेडिकल रिपोर्ट्स से यह तथ्य सामने आया कि महिपाल को शराब की गंभीर लत थी और उनके लीवर व किडनी को नुकसान इसी कारण हुआ था।
एलआईसी ने क्यों ठुकराया क्लेम
महिपाल सिंह की पत्नी सुनीता सिंह ने पॉलिसी की राशि पाने के लिए दावा दायर किया, जिसे एलआईसी ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि बीमाधारक ने शराब की लत को छिपाया था, और अंततः वही उनकी मृत्यु का कारण बनी।
लंबी कानूनी लड़ाई
सुनीता सिंह ने पहले जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। फोरम ने एलआईसी को 5.21 लाख रुपये की राशि, ब्याज और क्षतिपूर्ति के साथ अदा करने का आदेश दिया। राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी यही फैसला कायम रखा। उनका मानना था कि चूँकि यह कैश बेनिफिट पॉलिसी है, इसलिए भुगतान किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
एलआईसी ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मार्च 2025 में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने एलआईसी के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि:
- बीमा लेते समय छुपाई गई जानकारी (शराब की लत) ही मृत्यु का कारण बनी।
- ऐसी आदतें बीमा कंपनी के जोखिम मूल्यांकन को सीधे प्रभावित करती हैं।
- जीवन आरोग्य जैसी पॉलिसियों में अगर बीमारी शराब से जुड़ी है, तो भुगतान का आधार नहीं बन सकता।
भविष्य के लिए सबक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर बीमाधारक कोई बीमारी या आदत छिपाता है और वही उसकी मौत या इलाज का कारण बनती है, तो बीमा कंपनी क्लेम देने के लिए बाध्य नहीं होगी। अदालत ने 2015 के सुल्भा प्रकाश मोतेगांवकर बनाम एलआईसी मामले को भी अप्रासंगिक करार दिया क्योंकि वहाँ छिपाई गई जानकारी मृत्यु का कारण नहीं थी।
यह मामला उन सभी पॉलिसीधारकों के लिए चेतावनी है जो बीमा लेते समय छोटी लेकिन महत्वपूर्ण जानकारियों को नजरअंदाज कर देते हैं। बीमा भरोसे का अनुबंध है और उसमें पारदर्शिता दोनों पक्षों के लिए आवश्यक है।