देशभर में ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर चर्चाएं तेज हैं। इस क्रम में मंगलवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से विचार-विमर्श करेगी। इस समिति का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं का अध्ययन करना है। इससे पहले समिति ने शिक्षाविदों और पूर्व सांसदों से चर्चा की थी, जिन्होंने एक साथ चुनाव कराने के फायदों पर जोर देते हुए कहा कि इससे नीति निर्माण में रुकावटें कम होंगी, प्रशासनिक कार्यक्षमता बढ़ेगी और चुनावी प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित होगी।
जेपीसी अध्यक्ष पीपी चौधरी का बयान
जेपीसी के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने बताया कि विशेषज्ञों ने ‘एक देश, एक चुनाव’ को देश के विकास और स्थायित्व के लिए आवश्यक बताया है। उन्होंने कहा, “यदि हम चाहते हैं कि देश तेजी से आगे बढ़े, तो यह कदम जरूरी है।” हालांकि, कुछ विपक्षी दल और आलोचक इस प्रस्ताव पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि इससे संघवाद, राज्यों की स्वायत्तता और क्षेत्रीय आवाजें कमजोर हो सकती हैं।
संविधान संशोधन की जरूरत
‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव आवश्यक होगा। इसके तहत अनुच्छेद 82, 83, 172 और 327 में संशोधन प्रस्तावित हैं। साथ ही केंद्र शासित प्रदेश कानून में भी बदलाव की योजना है।
समिति को मिला अतिरिक्त समय
लोकसभा ने 12 अगस्त को समिति को रिपोर्ट सौंपने की नई समय सीमा 2025 के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह तक तय की है। पहले यह रिपोर्ट दिसंबर 2024 में प्रस्तुत की जानी थी। जेपीसी में कुल 39 सदस्य शामिल हैं, जिनमें 27 लोकसभा और 12 राज्यसभा सांसद हैं। ये विभिन्न दलों जैसे भाजपा, कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना (यूबीटी) से आते हैं।