नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत ने सोमवार को 45 वर्ष पुराने मामले पर विचार करने को लेकर हामी भर दी है। दरअसल, अदालत में 1975 में लगाए गए आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने व 25 करोड़ रुपये के मुआवजे वाली एक याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका वीरा सरीन नामक महिला ने दाखिल की है। इसमें उन्होंने इमरजेंसी के दौरान अपनी संपत्ति जब्त किए जाने के बदले में मुआवजा देने की मांग रखी है। इस याचिका को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया है।
वीरा सरीन की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे पक्ष रख रहे हैं। सुनवाई के दौरान वकील हरीश साल्वे ने कहा कि, ‘हमें इतिहास में दोबारा झांकना होगा और देखना होगा कि उस समय चीजें सही थीं या नहीं।’ उन्होंने कहा कि, ‘अगर इतिहास को सही नहीं किया गया तो यह अपने आप को दोहराता है। कृपया इस मामले पर गौर करें।’ आपातकाल के दौरान जब्त की गई संपत्ति के लिए मुआवजे की मांग और इसे असंवैधानिक घोषित करने वाले मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली बेंच कर रही है। इस बेंच में न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और ऋषिकेश रॉय शामिल हैं।
याचिका में वीरा सरीन ने कहा कि उन्हें और उनके पति को देश छोड़ने के लिए विवश किया गया। उन्हें धमकी दी गई कि अगर वे देश में रहे तो जेल भेज दिए जाएंगे। देश में इमरजेंसी के 45 साल व इसके हटाए जाने के 43 साल बाद शीर्ष अदालत में 94 वर्षीय वीरा सरीन ने याचिका दाखिल की है। यह इमरजेंसी 25 जून 1975 की मध्यरात्रि से लागू हुई थी और मार्च 1977 में इसे हटाया गया था।