सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष अदिश सी. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी को लेकर गहरी चिंता जताई है। निशिकांत दुबे ने कथित तौर पर कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो फिर संसद को बंद कर देना चाहिए। उनके इस बयान पर कानूनी समुदाय ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
वरिष्ठ वकील अग्रवाल ने इस टिप्पणी को ‘चौकाने वाला’ करार दिया और कहा कि सत्तापक्ष के नेताओं की ओर से ऐसे बयान लोगों के मन में न्यापालिका पर भरोसा खत्म कर सकते हैं। ‘पंजाब राज्य बनाम पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव’ और ‘तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2023 के ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र करते हुए अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में कोई तय समयसीमा नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए तीन महीने की एक तार्किक समयसीमा तय की और ये फैसला संविधान की सीमा में रहकर ही लिया गया।
उन्होंने कहा, यह फैसला न्यायपालिका की सीमा लांघने का उदाहरण नहीं हैं। कोर्ट ने न तो राष्ट्रपति और न ही राज्यपाल को कोई आदेश दिया, बल्कि सिर्फ इतना कहा कि अगर तीन महीने से ज्यादा देर होती है तो उसमें उनकी स्वीकृति मानी जाएगी। अग्रवाल ने कहा कि अगर सरकार को कोर्ट की ओर से तय समयसीमा पर असहमति है, तो उसके पास कानून बनाने और मौजूदा प्रावधानों में संशोधन करने का अधिकार है। उन्होंने लिखा, समयसीमा को लेकर मतभेद हो सकता है, लेकिन इसका सही तरीका सार्वजनिक आलोचना नहीं, बल्कि कानून में संशोधन है।
अग्रवाल ने न्यायपालिका के प्रति अब तक दिखाए गए सम्मान के लिए सरकार की सराहना की और प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया कि वे अपनी पार्टी के नेताओं को ऐसी सार्वजनिक टिप्पणियां करने से रोकें, जो संविधान द्वारा स्थापित शक्तियों के संतुलन को कमजोर करती हैं और न्यायपालिक व कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को नुकसान पहुंचाती हैं।
निशिकांत दुबे के बयान के लिए माफी मांगे पीएम मोदी: बीके हरिप्रसाद
उधर, कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा की ओर से सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्म पर किए गए ट्वीट पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, यह भाजपा का नया फैशन है। उनके कट्टरपंथी तत्व संविधान, तिरंगा और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बोलेंगे और वे चुपचाप कहेंगे कि हम इस बयान से खुद को अलग रखते हैं। पीएम मोदी को निशिकांत दुबे के बयान के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।