भारतीय मदद के लिए तालिबान ने आभार जताया

भारत ने बीते दिन 1.6 मीट्रिक टन जीवनरक्षक दवाओं की पहली खेप अफगानिस्तान भेजी थी। इसके बाद रविवार को तालिबान ने भारत की तारीफ की। तालिबान की ओर से भारत का शुक्रिया अदा करते हुए कहा गया कि भारत और अफगानिस्तान के बीच के रिश्ते काफी अहम हैं। भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्दजई ने कहा कि भारत ने मुश्किल की घड़ी में अफगानिस्तान की मदद की है, इससे वहां कई परिवारों को मदद मिलेगी। 

मामुन्दजई ने ट्वीट किया कि सभी बच्चों को थोड़ी मदद की जरूरत होती है। चिकित्सा सामग्री की पहली खेप भारत से आज सुबह काबुल आई। 1.6 मीट्रिक टन जीवनरक्षक दवाओं से मुश्किल की घड़ी में बहुत से परिवारों की मदद होगी। भारत के लोगों का उपहार।

उन्होंने लिखा कि महात्मा वह है जो अपने साथ बुराई करने वालो के साथ भी भलाई करे। इस कठिन समय में अफगानिस्तान के बच्चों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए भारत को धन्यवाद। इससे पहले इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (आईईए) के उप प्रवक्ता अहमदुल्ला वासिक ने शनिवार को कहा था कि ‘भारत एक अग्रणी देश है। अफगानिस्तान और भारत का संबंध बहुत महत्वपूर्ण है।

दरअसल, भारत ने शनिवार को पहली बार जीवन रक्षक दवाओं की 1.6 टन खेप अफगानिस्तान पहुंचाई। यह दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों को सौंपी गई। यह खेप काबुल से दिल्ली आई उसी चार्टर्ड फ्लाइट में भेजी गई, जिसमें 10 भारतीयों व 94 अफगानिस्तानी अल्पसंख्यकों को शुक्रवार को भारत लाया था।

भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि अफगानिस्तान में चुनौतीपूर्ण हालात देखते हुए सरकार ने दवाओं की खेप विमान से भेजने का निर्णय लिया था। इससे पहले भारत ने सड़क मार्ग से पाकिस्तान होते हुए 50 हजार टन अनाज व दवाएं अफगानिस्तान भेजने की घोषणा भी की थी, जिसकी तैयारियां हो रही हैं। भारत कोशिश में है कि अफगानिस्तान को मानवीय मदद मिलती रहे।

आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर गंभीर नहीं तालिबान
अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए तालिबान के 100 दिन से ज्यादा बीत गए और अफगान नागरिकों के जानमाल की सुरक्षा के उसके तमाम दावों के बावजूद जमीनी हकीकत ठीक उलट है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दोहा वार्ता के वादों के बावजूद वह आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर गंभीर नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के साथ दोहा में वार्ता के दौरान किए गए वादों को तालिबान ने हल्के में लिया। शायद उसे पता था कि मानवाधिकार, महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, नौकरियों जैसे मामले उसे विफल साबित करेंगे। तालिबान ने दोहा वार्ता के दौरान वादा किया था कि वह अलकायदा और आईएस को अफगानिस्तान में गतिविधियों की इजाजत नहीं देगा।

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