1 अगस्त से लागू हुआ अमेरिकी टैरिफ, भारत के ऑटो पार्ट्स निर्यात पर असर

1 अगस्त 2025 से अमेरिका द्वारा भारत से आयात होने वाले ऑटो पार्ट्स पर 25 प्रतिशत का नया टैरिफ लागू कर दिया गया है। इस फैसले का सीधा असर भारतीय निर्यात पर पड़ रहा है और इससे कंपनियों की मूल्य निर्धारण रणनीति तथा सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती है। अमेरिका की यह नीति रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदने के चलते भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देखी जा रही है, जिससे कीमतों में और अस्थिरता आने की आशंका है।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार

भारत का ऑटो पार्ट्स उद्योग लगभग 111 अरब डॉलर का है। वित्त वर्ष 2025 में इसके कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 9.5 अरब डॉलर रही, जो कुल निर्यात का 27 प्रतिशत है। इसके मुकाबले भारत अमेरिका से केवल 7 प्रतिशत ऑटो पार्ट्स आयात करता है। इससे स्पष्ट है कि अमेरिका भारतीय कंपनियों के लिए एक प्रमुख बाजार है।

अन्य देशों की तुलना में भारत पर ज्यादा शुल्क

भारत से आयात पर 25% शुल्क लगाया गया है, जबकि जापान पर यह शुल्क 15%, वियतनाम पर 20% और इंडोनेशिया पर 19% है। इससे भारत की कीमत आधारित प्रतिस्पर्धा को नुकसान हो सकता है और भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे साबित हो सकते हैं।

मैक्सिको और कनाडा को राहत

मैक्सिको और कनाडा जैसे देश USMCA समझौते के तहत इस टैरिफ से बाहर हैं। यदि ये देश अमेरिकी बाजार के लिए स्थानीय उत्पादन की शर्तें पूरी करते हैं, तो उन्हें अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा।

भारतीय आपूर्तिकर्ताओं की अमेरिकी बाजार में अहम भूमिका

भारत अमेरिकी ऑटोमोबाइल उद्योग की आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय कंपनियां ड्राइवट्रेन, इंजन, चेसिस और इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े कई जरूरी पुर्जे और सॉफ़्टवेयर सिस्टम की आपूर्ति करती हैं।

मैक्सिको में निवेश की योजना बना रही भारतीय कंपनियां

नए टैरिफ के कारण कुछ भारतीय कंपनियां अब अमेरिका के लिए मैक्सिको के जरिये आपूर्ति बनाए रखने के विकल्प पर विचार कर रही हैं, जहां शुल्क नहीं लगता। हालांकि, टैक्स ढांचे को लेकर स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं होने के कारण कंपनियां फिलहाल सतर्क रुख अपना रही हैं।

MSME इकाइयों पर पड़ेगा सीधा प्रभाव

भारत का ऑटो पार्ट्स उद्योग मुख्यतः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) से जुड़ा है, जो वैश्विक व्यापार में अचानक आए बदलावों से जल्दी प्रभावित होते हैं। ऐसे में यह टैरिफ नीति छोटे उद्यमों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।

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