देहरादून। हरिद्वार को छोड़कर उत्तराखंड के 12 जिलों में संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे शुक्रवार शाम घोषित कर दिए गए। इस बार का जनादेश पारंपरिक राजनीतिक दलों के खिलाफ और निर्दलीय प्रत्याशियों के पक्ष में गया। भाजपा को कई अहम क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, सल्ट विधायक महेश जीना और लैंसडौन विधायक महंत दिलीप रावत के परिजनों की पराजय भी शामिल है।
गुरुवार सुबह आठ बजे से शुरू हुई मतगणना में राज्य भर के 89 विकासखंड मुख्यालयों पर ग्राम पंचायत सदस्य, प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों के परिणाम जारी किए गए।
जिला पंचायतों में निर्दलीयों का जलवा
जिला पंचायत सदस्य पदों पर निर्दलीयों ने 145 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को 121 और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों को 92 सीटों पर सफलता मिली। यह रुझान राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव संकेत कर रहा है।
वरिष्ठ नेताओं को झटका
भाजपा विधायक महेश जीना के पुत्र करण नेगी और विधायक दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत को हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, बदरीनाथ क्षेत्र में भी भाजपा प्रत्याशी पराजित हुआ, जो पार्टी अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है।
पौड़ी में दिलचस्प मुकाबला
पौड़ी जनपद की 38 सीटों में से भाजपा ने 18, कांग्रेस ने 16 और निर्दलीयों ने 4 सीटें जीतीं। हालांकि भाजपा सीटों के लिहाज से आगे रही, लेकिन वरिष्ठ नेताओं की हार ने पार्टी को अंदरूनी नुकसान पहुंचाया। खिर्सू की ग्वाड़ सीट पर कांग्रेस के चैत सिंह ने भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष संपत सिंह को शिकस्त दी।
बागेश्वर में अध्यक्ष पद को लेकर पेच
यहां 19 सीटों में से भाजपा को 9, कांग्रेस को 6 और निर्दलीयों को 4 सीटें मिलीं। स्पष्ट बहुमत न होने के कारण जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव निर्दलीयों के समर्थन पर निर्भर रहेगा।
चमोली में चौंकाने वाले नतीजे
चमोली जनपद में भाजपा को महज 4 और कांग्रेस को 5 सीटें मिलीं, जबकि निर्दलीय प्रत्याशियों ने 17 सीटों पर जीत दर्ज कर सभी को चौंका दिया। पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी रजनी भंडारी पोखरी ब्लॉक की रानो सीट से हार गईं। ढाक और हेलंग वार्डों में भी भाजपा व कांग्रेस को पीछे रहना पड़ा, जबकि निर्दलीयों आयुषी बुटोला और रमा राणा ने दमदार जीत हासिल की।
निष्कर्ष:
इस बार का पंचायत चुनाव युवाओं, निर्दलीयों और बागी प्रत्याशियों के पक्ष में गया है। राज्य की राजनीति में यह परिणाम नई दिशा की ओर संकेत करता है, जहां जनता अब स्थानीय मुद्दों और स्वतंत्र छवियों को प्राथमिकता दे रही है।