योगी जी जरा इधर भी देखिये!

नूपुर शर्मा, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एकनाथ शिंदे, उदयपुर, सूर्यकांत और पारदीवाला, फिर अमरावती, जब देश में सुविधाभोगी लोकतंत्र कायम होता है तब ऐसे ही नाम और चेहरे समाज के दृष्टिपटल पर तैरते, डूबते, उतराते, दिखते हैं लेकिन इन सब से इतर कुछ चेहरे, ऐसी घटनायें भी हैं, भले ही वे गुमनाम शहरी ही हों, जिनकी ओर सत्ता को, विपक्ष को, सिस्टम और न्याय के रक्षकों को ध्यान देने की जरूरत है। इस संबंधन में हम सरकार के महत्वपूर्ण राजस्व विभाग के विषय में कुछ कहना चाहते हैं।

राजस्व विभाग किस संवेदनहीनता और गैर जिम्मेदारी से कार्य करता है इसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं:

मुज़फ्फरनगर की जानसठ तहसील प्रांगण में कुछ दिनों से भारतीय किसान यूनियन (तोमर) का धरना चल रहा है। मुद्दा यह है कि जानसठ तहसील के एक लेखपाल ने एक किसान से भूलेख सम्बन्धी कार्य करने के एवज में रिश्वत मांगी थी। किसान-लेखपाल के बीच काम के बदले रिश्वत मांगने का यह ऑडियो खूब वायरल हुआ है किन्तु इसकी आवाज अभी तक न तो जिलाधिकारी को सुनाई दी, न कमिश्नर को, न मुख्यमंत्री को। लोकल मंत्रियों को भी यह ऑडियो सुनने की फुर्सत नहीं। एसडीएम अभिषेक कुमार ने अलबत्ता कहा है कि ऑडियो की जाँच हो रही है। जानसठ बार असोसिएशन के सचिव प्रमोद शर्मा ने लेखपाल के रिश्वत मांगने वाले ऑडियो के सन्दर्भ में कहा कि किसानों को परेशान कर उनसे सुविधाशुल्क के नाम पर रिश्वत मांगना लेखपालों के लिए आम बात है।

दशकों पहले तत्कालीन राजस्व मंत्री चौधरी चरण सिंह ने राजस्व विभाग के सबसे बड़े छोटे हाकिम-पटवारी पद को समाप्त कर लेखपाल पद का सृजन किया था लेकिन पटवारी का नाम लेखपाल रखने के बाद भ्रष्टाचार की गंगोत्री तो पहले की तरह बह रही है। जब कभी राजस्व विभाग में किसी ईमानदार कर्तव्यनिष्ट अधिकारी की तैनाती होती है तो लेखपालों व राजस्व विभाग के घोटाले कभी-कभार सामने आ जाते हैं। कुछ वर्ष पहले मोरना के खादर क्षेत्र में करोड़ों रुपये का भूमि घोटाला सामने आया था। शिवकुमार शर्मा नामक लेखपाल जेल भी गया था। कोई भी सोच सकता है कि करोड़ों रुपये की सैकड़ों बीघा भूमि का घोटाला अकेले लेखपाल नहीं कर सकता। इसी दौरान कचहरी स्थित लेखागार में अग्निकांड भी हुआ था। इस सब का नतीजा क्या निकला?

राजस्व विभाग में क्या हो रहा है, इसके 2-4 उदाहरण दे रहे हैं:

  • खतौली तहसील के लेखपाल कैलाशचंद ने ग्राम शेखपुरा के शाहिद से भूलेख दुरुस्ती की एवज में 10000 रुपये की रिश्वत मांगी। रिश्वत मांगने का ऑडियो सही सिद्ध होने पर एसडीएम जीतसिंह राय ने 9 मई 2022 को लेखपाल को निलंबित
    कर दिया। रिश्वत मांगने का ऑडियो सत्य साबित होने पर एसडीएम बुढ़ाना अरुण कुमार ने कानूनगो ब्रह्मसिंह को 12 मई 2022 को निलंबित कर दिया।
  • लेखपाल, कानूनगो, नायब-तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम चींटी की गति से कागज चलाने के आदी होते हैं। सरकारी कामकाज में मानवीय पक्ष या
    संवेदना का कोई स्थान नहीं। हमें जानकारी है कि सदर तहसील के ग्राम पचेंडा में 85 वर्षीय किसान श्यामसिंह जो पहले सेना में कार्य कर चुके है और हृदय के मरीज़ है, अपनी कुछ ज़मीन बेचने के लिए सरकारी अनुमति लेने को लम्बे समय से चक्कर काट रहे हैं। किसी अधिकारी को उनकी वृद्धाअवस्था व बीमारी का कतई ध्यान नहीं। कोई कितना भी परेशान रहे, कागज तो कछुवा चाल से ही चलेंगे।
  • राजस्व विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार व किसान के शोषण की एक दुःखद और काली करतूत 3 जुलाई 2022 को सामने आई। झांसी जनपद के पूंछ ग्राम में 1976 में चकबंदी के दौरान रघवीर पाल के दो चकों में से एक चक लेखपाल चकबंदी ने साज करके दूसरे किसान के नाम इंद्राज कर दिया। रघवीर अपनी जमीन हासिल करने के लिए तहसील, एसडीएम कोर्ट आदि के चक्कर काटते-काटते थक गया।
    25 से ज्यादा वर्षों तक राजस्व विभाग व सरकारी अमला उसे नई-नई तरकीबें बताता रहा। 18 जून 2022 को भ्रष्ट व नाकारा सिस्टम से हारा-थका बूढ़ा किसान रघवीर मांठ तहसील के सम्पूर्ण समाधान दिवस पर अपनी दीर्घकालीन समस्या को हल कराने पहुंचा। तहसीलदार ने उसे कानूनगो सत्यनारायण तिवारी के पास भेजदिया। कानूनगो ने रघवीर को डाटते हुए कहा कि बिना पैसे दिए जमीन नहीं
    मिलेगी। इस प्रकार फटकार और रिश्वतखोरी के जंजाल से त्रस्त होकर रघवीर ने आत्महत्या करना मुनासिब समझा। उसने सुसाइड नोट में राजस्व विभाग की कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा खोला है। यदि सरकार में संवेदनाशीलता होती तो
    इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद कानूनगो ही नहीं, कलैक्टर तक को नाप दिया जाता। अफ़सोस है कि रघवीर के परिवार की पीड़ा सुनने आजतक कोई नहीं पहुंचा। ऐसी ह्रदयविदारक घटना पर किसी मंत्री या जनप्रतिनिधि का पहुंचना ज़रूरी था।
  • राजस्व विभाग की दूषित एवं अहंकारी कार्यप्रणाली का उदाहरण 2 जुलाई 2022 को अमेठी की तिलई तहसील में देखने को मिला। 75 वर्ष का बूढ़ा किसान महादेव सम्पूर्ण समाधान दिवस में अपनी समस्या को लेकर पहुंचा। लेखपाल ने उसकी कुछ भूमि रिश्वत लेकर दूसरे किसान के नाम चढ़ा दी थी। 15 वर्षों से वह दफ्तरों की दौड़ लगा रहा है। हारा-थका यह किसान अधिकारियों के सामने अपना दुखड़ा रोता दिखाई दिया तो एक पत्रकार ने इसका फोटो खींच लिया। कलेक्टर साहब का कहने है कि हम तो उसे कुर्सी पर बैठाते लेकिन पत्रकार ने उसे फर्श पर बैठा दिया। उन्होंने ये नहीं बताया कि 15 वर्षों से तहसील व कलक्ट्रेट के चक्कर काट रहे बूढ़े महादेव की समस्या का समाधान उन्होंने किया है या नहीं।

ये चंद दुःखद घटनायें हैं जिनसे ज्ञात होता है कि राजस्व विभाग पुरानी किसान विरोधी नीति पर आज भी चल रहा है। संवेदना का तो प्रश्न ही नहीं। मुख्यमंत्री जी माफियाओं के विरुद्ध जो अभियान चला रहे हैं, वह स्वागत योग्य है किन्तु किसान को तहसीलों के भ्रष्टतंत्र से मुक्ति मिले, इस ओर भी उन्हें ध्यान देना होगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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