पितृपक्ष में पूर्वजों के अप्रसन्न होने के 7 संकेत, जानें शास्त्रों का संदेश

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष का समय अपने पूर्वजों को याद करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए विशेष माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान पितर अपने वंशजों का हाल जानने धरती पर आते हैं। कई बार वे प्रसन्न या अप्रसन्न होने का संकेत भी देते हैं। धर्मग्रंथों और गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि घर में कुछ खास घटनाएँ बार-बार घटने लगें तो समझना चाहिए कि पितर श्राद्ध या तर्पण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

पितरों की नाराज़गी के संकेत

  • कौवों का बार-बार आना और कांव-कांव करना : कौवा पितरों का प्रतीक माना जाता है। यह संकेत है कि वे तर्पण और भोजन की प्रतीक्षा में हैं।
  • सपनों में पितरों का दिखना : यदि सपनों में पूर्वज बार-बार नज़र आएं और भोजन या जल माँगें, तो इसका अर्थ है कि वे तृप्त नहीं हैं।
  • अचानक आर्थिक संकट : बिना कारण धन की हानि या आर्थिक तंगी का आना पितरों की नाराज़गी का सूचक है।
  • लगातार बीमारियाँ : परिवारजन बार-बार बीमार पड़ें और इलाज से भी आराम न मिले तो यह भी पितरों का संदेश हो सकता है।
  • दीपक का अपने आप बुझ जाना : यह असंतोष और ऊर्जा रुकने का प्रतीक माना जाता है।
  • पूजा-पाठ में रुकावटें : पूजा सामग्री का गायब होना या बार-बार बाधा आना संकेत है कि पितरों का श्राद्ध अधूरा है।
  • तुलसी या फूल का मुरझाना : तुलसी का अचानक सूखना भी पितरों के अप्रसन्न होने का लक्षण माना जाता है।

क्या करें?

शास्त्रों के अनुसार, यदि ये संकेत दिखाई दें तो तर्पण, ब्राह्मण भोज, गौदान और जल अर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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