इन दो-तीन दिनों में सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ छाये हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी के इन शीर्ष नेताओं को लोग उनके प्रधानमंत्रित्व काल के दो टर्म पूरा होने और पं जवाहर लाल नेहरू के समान दो कार्यकाल अवधि तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए बधाइयां दे रहे हैं। दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ के सर्वाधिक समय तक निरन्तर उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने पर लोग अभिभूत हैं। योगी जी की तुलना पं. गोविन्द बल्लभ पन्त के मुख्यमंत्रित्वकाल से की जा रही है। इन नेताओं के समर्थक मोदी जी एवं व योगी जी के साथ के चित्र पोस्ट पर डालकर गद्गद् हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राष्ट्रहित, समाजहित, जनहित में जो कर रहे हैं, उसका पूरे भारत और उत्तरप्रदेश मे रचनात्मक प्रभाव पड़ रहा है। दोनों की शोहरत सात समुंदर पार विदेशों तक पहुंच चुकी है।
इस समय का सबसे ज्ज्वलन्त प्रश्न यह है कि क्या सिर्फ मोदी और योगी का प्रशस्तिगान भारत को श्रेष्ठ भारत और उत्तर प्रदेश को देश का अग्रणी राज्य बनाने के लिए पर्याप्त है? भाजपा के जो लोग मोदी और योगी को पोस्टर ब्वाय बनाकर चुनाव जीतते हैं, उनकी ख्याति को भुना कर अपनी राजनीति चमकाते हैं। विधायकों, सांसदों, मंत्रियो, पदाधिकारियों की पलटन मोदी और योगी के एजेंडे को आगे बढ़ाने मैं कितना सहयोग, कितना योगदान कर रहे हैं?
जो लोग मोदी और योगी के आभामंडल अथवा उनकी लोकप्रियता के सहारे विधायक, सांसद या मंत्री बने उन्होंने खुद ही अपने इर्दगिर्द चौकड़ी एकत्र कर ली है। भाजपा, एनडीए के साधारण कार्यकर्ता अथवा जन सामान्य से वे दूर होते जा रहे हैं।
अजीब बात है कि आम लोगों को टालने के लिए ये कहते हैं कि नौकरशाही आज काबू से बाहर है। अधिकारी हमारी बात ही नहीं सुनते ! अपना और अपनी चौकड़ी वालों का काम, (जायज हो या नाजायज़) चुपचाप धीरे से करा लेते हैं।
यदि उत्तर प्रदेश में नौकरशाही नियंत्रण से बाहर है और ख़ुद मुख्तार बन चुकी है तो इसके लिए दोषी कौन है? ब्यूरोक्रेट्स का काम विवेक और निष्पक्षता का इस्तेमाल करते हुए प्रशासन की गाड़ी को सुचारू रूप से हांकने का है। नेताओं को सत्ता की हनक में अधिकारियों से बदसलूकी नहीं करनी चाहिए और नौकरशाही के पुर्जों को समझना चाहिये कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि की अवहेलना या अनादर नहीं होना चाहिये। होता है तो माना जाए कि सिस्टम में कहीं गड़बड़ ज़रूर है।
इन दिनों कैराना से सपा की सांसद इकरा हसन का अपमान वाला प्रकरण चर्चाओं में है। सांसद का कहना है कि सहारनपुर के एडीएम संतोष कुमार सिंह ने उनसे अभद्रता की है। समाजवादी पार्टी इस प्रकरण को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने में जुट गई है किन्तु विचारणीय प्रश्न यह है कि जनप्रतिनिधि का अपमान नहीं होना चाहिए, भले ही इकरा हसन विपक्ष में हों।
बात सिर्फ इकरा हसन की नहीं, योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार ने उप जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से आरोप लगायें। इनसे पूर्व रालोद विधायकदल के नेता राजपाल सिंह बालियान ने बुढ़ाना की एसडीएम पर आरोप लगाए थे।
सांसद इकरा हसन व कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार की बात ही नहीं, उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता द्वारा सार्वजनिक रूप से की गई शिकायतें भी गंभीर हैं। उनका कहना है कि विभागीय अधिकारी न शासकीय नीतियों का पालन करते हैं, न उनके आदेशों के अनुरूप कार्यवाही करते हैं। मंत्री का कहना है कि, अधिकारियों ने तो कई पत्रावलियां ही गायब कर दीं।
इसी बीच खबर आई कि कानपुर देहात के अकबरपुर थाना पुलिस ने कुल लोगों पर एससी/एसटी एक्ट में झूठे मुकदमें दायर कर दिए। पुलिस की कारगुजारी के विरोध में राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला धरने पर बैठ गई। यह अभी 24 जुलाई को हुआ।
इससे पूर्व एक मंत्री ने कहा कि उनके विभाग में हुए जिला स्तरीय तबादलों से पूर्व राज्य मुख्यालय के विभागाध्यक्ष ने उन्हें स्थानान्तरणों से पूर्व परामर्श नहीं लिया। जिला स्तर के अधिकारियों की कार्यप्रणाली में भी असंतुष्टि झलकती है। पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि चकबंदी, तहसील, थानों व बिजली विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है।
देश और प्रदेश उन्नति व सुशासन के बावजूद समस्याओं से ग्रसित है। मुगलिया सल्तनत एवं ब्रिटिश कालीन प्रवंचनाएं, गुलामी की मानसिकता, देशप्रेम पर परिवार-वंशवाद-जातिवाद का हावी होना, कुर्सी के लिए तुष्टिकरण और देश के शत्रुओं के तलुवे चाटने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि जब मोदी पहाड़ों पर चला जाएगा और योगी चटाई उठा कर मठ में घुस जाएगा, तब तुम्हारा क्या होगा?
मोदी और योगी सही रास्ते पर चल रहे हैं। चारों ओर उनकी वाह वाही और जयकार है किन्तु आम आदमी भ्रष्ट, नाकारा सिस्टम से त्रस्त है। क्या नौकरशाही की शिकायत करने और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से स्थिति सुधरेगी?
मुझे अच्छी तरह याद है। साठ के दशक की बात है। शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याण देव महाराज ने शुकतीर्थ (मुजफ्फरनगर) में शुकदेव आश्रम परिसर में महावीर हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित कराई थी। प्राणप्रतीष्ठा अनुष्ठान के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में वे लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष अनंत शयनम अय्यंगार जी को शुकतीर्थ लाए थे। श्री अय्यंगार ने इस मौके पर बहुत कुछ कहा किन्तु एक बात आज भी मैं भूला नहीं हूं। उन्होंने श्रीराम भक्त हनुमान के गुणों का बखान करते हुए कहा था- ‘अच्छा हो हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ आप उनके किसी एक गुण को अंगीकार करें, उस पर चलें, यही उन्हें पूजने की सार्थकता है।’
भगवान हनुमान हो, माता-पिता-गुरु अथवा कोई अन्य विभूति हो, हम उनके चित्र लगायें, उनका गुणगान करें, और उनके सद्गुणों को, आचरणों को अपनाने से दूर रहें, तो इससे क्या हासिल होने वाला है?
भाजपा में नीव के पत्थर, निष्ठावान, तपस्वी कार्यकर्ता खुद को हाशिये पर क्यों समझते हैं? क्यों समझा जा रहा है कि ब्यूरोक्रेसी हावी हो रही है? यह स्थिति न कार्यकर्ता के लिए हितकारी है, न मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए, और न ही जनता जनार्दन के लिए ठीक है। नेताओं का आदर सम्मान होना चाहिए किन्तु कार्यकर्ता से संवाद और सामिप्य अति आवश्यक है। देश के समक्ष हिमालय जैसी चुनौतियां हैं, इन्हें मिल-बैठकर सुलझाइए।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’