5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी उमेश मिश्र पौधा रोपण के लिए कम्पनी बाग यानी कमला नेहरु वाटिका पहुंचे तो देखा कि बाग का विशेष आकर्षण का फव्वारा बंद पड़ा है। इस पर नाराजगी जताई तो जांच की बात शुरू हुई। कुल मिला कर ठीकरा ठेकेदार के सिर फोड़ा जाना संभावित है।
प्रश्न है कि यदि ठेकेदार फव्वारा चलाने में कोताही बरत रहा था तो चेयरपर्सन साहिबा, उद्यान निरीक्षक, पालिका की उद्यान समिति के चेयरमैन एवं सदस्यगण क्या आंखें मूंदे बैठे थे? वास्तविकता यह है कि नगर पालिका परिषद के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों तथा वेतनभोगी कर्मचारियों की लापरवाही से एक खूबसूरत बाग और शहर का एकमात्र भ्रमण स्थल न केवल उजाड़ हुआ है बल्कि शोहदों, आवारा लोगों की ऐशगाह बन गया है, जहां सभ्य सुशील नागरिक आने जाने से कतराते हैं। कभी यह कम्पनी बाग सवेरे सवेरे बड़े बूढों, स्त्रियों तथा बच्चों की किलकारियों से गुलज़ार रहता था, आज यहां मनहूसियत छाई रहती है।
खूबसूरत फूलों व फलदार वृक्षों वाले इस बाग में आकर्षण के दो मुख्य केन्द्र थे- इसका मनोहारी फव्वारा और आलीशान दरबार हॉल। आज ये दोनों बदहाल स्थिति में हैं। दरबार हॉल में जंगली कबूतरों ने बसेरा बना लिया है और फव्वारे की दशा जिला अधिकारी महोदय अपनी आंखों से देख चुके हैं।
ज्ञातव्य है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपने शासन के दौरान दो अति महत्व के काम किये थे। पहला- हर जिला मुख्यालय अथवा प्रमुख रणनीतिक स्थल पर कम्पनी की सेना का पड़ाव बनाना, दूसरे- हर जिला मुख्यालय में विशाल बाग लगवाना। भले ही आज इन बागों के नाम बदल दिये गए हों किन्तु आज भी इन बागों को कम्पनी बाग के नाम से जाना जाता है।
प्रायः प्रत्येक कम्पनी बाग में एक आलीशान दरबार हॉल बनाया गया था। मुजफ्फरनगर के कम्पनी बाग में भी है। दरअसल, सन् 1911 में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम व साम्राज्ञी मैरी के सम्मान में दिल्ली में राज्याभिषेक समारोह आयोजित कराया था। इसे दिल्ली दरबार नाम दिया गया था। उस समय देश के रजवाड़ों के राजा, अमीर-उमरा, जमींदार, नामी गिरामी लोग, जो दिल्ली दरबार में शिरकत नहीं कर सके, उन सब ने सम्राट, सम्राज्ञी के प्रति अपनी आस्था जताने के लिए दरबार हॉल में समारोह आयोजित किए। तब मुजफ्फरनगर के कम्पनी बाग में दरबार हॉल बना था। कम्पनी बाग के ठीक सामने सेना का पड़ाव स्थल था, जिसका अब नाम ही बाकी है। चप्पे-चप्पे पर कब्जे हो चुके हैं, कुछ सरकारी, कुछ गैर सरकारी।
सन् 1950-60 तक कम्पनी बाग भद्रजनों के लिए सुरक्षित था। मजाल कोई एक फूल भी तोड़ ले । धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी। जब श्री विद्याभूषण मंत्री बने तब उन्होंने पूरे शहर में वृक्षा रोपण कराया। कम्पनी बाग में भी वृक्षारोपण हुआ। गुंडे-बदमाश दो-तीन दिन बाद ही ट्री-गार्ड (पौधों की रक्षा के लिए लोहे से बने पिंजरे) उखाड़ कर ले गए।आस-पास के इलाकों से शोहदों के झुंड आने लगे। वे फूल ही नहीं, फूल के पौधे को भी उखाड़ने लगे। रोकने की जुर्रत किसी की नहीं।
जब प्रमोद तिवारी पर्यटन मंत्री बने तो उन्होंने कम्पनी बाग के दूसरे गेट (प्रदर्शनी मैदान की ओर) एक पर्यटन केन्द्र स्थापित कराया। इसमें गेस्ट रूम तथा भोजनालय की व्यवस्था थी। उद्घाटन स्वयं श्री तिवारी ने किया था। पर्यटन केन्द्र 6 महीने भी ठीक से नहीं चल सका क्योंकि सामने के मौहल्ले से गुंडों की टोलियां आती थीं। गेस्ट हाउस में ठहरने वाले पर्यटकों तथा स्टाफ के लोगों के साथ बदसलूकी करती थीं, मुफ्त में खाती-पीती, धमाचौकड़ी मचाती थीं। उन्हें नियंत्रित करने वाला कोई न था। परिणाम यह हुआ कि कम्पनी बाग का वह पर्यटन केन्द्र मजबूरन बंद करना पड़ा जबकि यह मुख्य दिल्ली-देहरादून मार्ग पर स्थित हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी नगरीय सुन्दरीकरण योजना पर करोड़ों-अरबों रुपये आवंटित कर रहे हैं। मुजफ्फरनगर नगर पालिका परिषद को भी अच्छी खासी रक़म आवंटित की है। कम्पनी बाग के सुंदरीकरण का भी प्रस्ताव है। जिला अधिकारी महोदय चूंकि प्रशासनिक कार्यों के अतिरिक्त शहर के सौंदर्यीकरण व पर्यटन स्थलों के विकास में भी रुचि रखते हैं, (हैदरपुर वेटलैंड, मोतीझील) इसलिए उनसे देहात का आग्रह है कि वे कम्पनी बाग के सौंदर्यीकरण के कार्यों में सुरक्षा बनाये रखने के लिए भी संबंधित लोगों, विभागों को उचित निर्देश दें। बेहतर रहेगा कि सिटी मजिस्ट्रेट की भी इन कार्यों में सहभागिता रहे। कम्पनी बाग को गुलज़ार रखना है तो वहां एक पुलिस चौकी स्थापित करनी ही होगी।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’