कन्नौज में दांव पर लगी सपा-भाजपा की प्रतिष्ठा, मुलायम की विरासत बचाने उतरे अखिलेश

कन्नौज। (Kannauj Lok Sabha Seat) डॉ. राम मनोहर लोहिया की कर्म भूमि रहे कन्नौज में जब खांटी समाजवादी व राजनीति के मंझे पहलवान मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक विरासत संभाली तो फिर उनके कभी पांव नहीं उखड़े। जब जरूरत पड़ी, तब बदलाव कर पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत काबिज रखी।

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी से ही सपा परिवार की जड़ें यहां कमजोर होनी शुरू हुईं। 2019 में सपाई गढ़ पूरी तरह ध्वस्त हो गया और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) चुनाव हार गईं। सांसद चुने गए सुब्रत पाठक और अखिलेश के बीच उसके बाद से ही जब-तब जुबानी जंग छिड़ती ही रही।

मुलायम की विरासत संभालने उतरे अखिलेश

2024 में अब उसी मुलायम परिवार में विरासत संभालने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश एक बार फिर मैदान में हैं। सपाई अखिलेश (Akhilesh Yadav) के कन्नौज लोकसभा सीट से उम्मीदवार के तौर पर उतरने की पहले से ही मांग कर रहे थे, जबकि जनता जातियों में बंटी है। अलग-अलग क्षेत्रवार सबकी अपनी बातें हैं। अब प्रत्याशी के तौर पर अखिलेश मैदान में हैं तो कन्नौज का सियासी रण दिलचस्प हो चुका है।

कन्नौज लोकसभा सीट पर 1998 से 2014 के बीच 16 साल में सपा सात मुकाबलों में जीती। दो बार उपचुनाव में भी सफल रही। सपा को फर्श से अर्श पर पहुंचाने वाले मुलायम सिंह यादव ने जब 2000 में कन्नौज को अलविदा बोला, तब बेटे अखिलेश यादव को गद्दी सौंपी। 2012 में जब अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने पत्नी डिंपल यादव को उपचुनाव में निर्विरोध निर्वाचित कराया। इस तरह जब-जब मुलायम परिवार का कोई सदस्य कन्नौज सीट से हटा, बदलाव हुआ, सीट उसे ही मिली।

सपा-भाजपा में बढ़ी जुबानी जंग

2019 में डिंपल के हारने के बाद कई बार सांसद सुब्रत पाठक और अखिलेश ने एक-दूसरे पर निशाने साधे। अब 2024 के चुनाव में सपा ने कन्नौज में पत्ते आखिरी समय में खोले हैं। इससे पहले जब तेज प्रताप के नाम की घोषणा हुई तो फिर जुबानी जंग बढ़ी।

सांसद सुब्रत ने चुनौती दे डाली कि सपा अध्यक्ष मैदान में आते तो उन्हें पता चल जाता। इसके बाद, पिछले दो दिन में तेजी से घटनाक्रम बदला। लखनऊ तक सपा कार्यकर्ता गए, कुछ ने सैफई की कोठी में दस्तक दी। बुधवार शाम फिर अखिलेश के मैदान में आने की चर्चा हुई। इस बीच सपा के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी ने बुधवार शाम जिला कार्यालय में अखिलेश के चुनाव लड़ने के संकेत दिए। उधर, सपा नेता, कार्यकर्ता व जनता भी अपनी-अपनी बात रखती रही। आखिरकार देर शाम अखिलेश के नाम की मुहर लग गई।

इंदरगढ़ के व्यापारी नरेंद्र सेठ कहते हैं, अखिलेश के लड़ने पर लड़ाई दिलचस्प होगी। तेज प्रताप को कम लोग जानते हैं। सुल्तान आलम बोले, प्रत्याशी का इंतजार था लेकिन अब अखिलेश के मैदान में आने से मुकाबला रोचक हो गया है। हसेरन के राजेंद्र सिंह बोले, यह क्षेत्र सपा-भाजपा सबके राज में उपेक्षित रहा। अशोक बोले, कोई भी लड़े, ये उनका घरेलू मसला है। हम सब तो भाजपा के हैं। सपा परिवारवाद में फंसी है।

…कन्नौज क्रांति अब होकर रहेगी: अखिलेश

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद फेसबुक पर डाली गई पोस्ट में लिखा कि ‘…कन्नौज क्रांति’ अब होकर रहेगी। उन्होंने लिखा कि सुगंध की नगरी सकारात्मक राजनीति के जवाब के रूप में, नकारात्मक राजनीति करने वाली भाजपा को जिस तरह की पराजय की ओर ले जा रही है, इतिहास में उसे ‘कन्नौज-क्रांति’ के नाम से जाना जाएगा। जनतंत्र में जनता की मांग ही सर्वोपरि होती है। कन्नौज के हर गांव-गली-गलियारे से जो आवाज उठ रही है, साथ ही जो सपा और आइएनडीआइए गठबंधन के स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं की भी पुरजोर मांग है, वह सर आंखों पर।… ‘कन्नौज-क्रांति’ होकर रहेगी। मोहब्बत की महक फैलानी है? हमको लिखनी नई कहानी है!!।

‘दुनिया देखेगी कन्नौज का इतिहास’: सुब्रत पाठक

कन्नौज के मौजूदा भाजपा सांसद सुब्रत पाठक हैं। वह इस बार भी मैदान में हैं और नामांकन करा चुके हैं। सपा के दांव पर उन्होंने कहा कि प्रदेश में अखिलेश यादव सबसे बड़ा सांप्रदायिक चेहरा हैं। वह माफियाओं के मातम में जाते हैं। कन्नौज की जनता ने हमेशा इतिहास लिखा है। इस बार भी अखिलेश को पराजित करने का मन हर जन बना चुका है। फिर बनने जा रहा इतिहास दुनिया देखेगी।

सपा-भाजपा दोनों की फंसी प्रतिष्ठा

कन्नौज सीट पर सपा व भाजपा दोनों ही दलों के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। सपा में स्वयं अखिलेश यादव पर ही इस सीट को लेकर जिम्मेदारी है। इसी तरह भाजपा में सांसद सुब्रत, समाज कल्याण मंत्री व सदर विधायक असीम अरुण, जिला पंचायत अध्यक्ष प्रिया शाक्य, छिबरामऊ, तिर्वा व रसूलाबाद विधायक क्रमश: अर्चना पांडेय, कैलाश राजपूत व पूनम संखवार की प्रतिष्ठा लगी है।

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