परिवारवाद का गुरूर!

एक देहाती कहावत है- पंचो की बात सीर माथे लेकिन पतनाला वहीं गिरेगा। कांग्रेस कार्य समिति की सात घंटे चली मैराथन बैठक का नतीजा भी यही निकला। कि कांग्रेस नेहरू परिवार के अलावा किसी को नेतृत्व सौंप नहीं सकती। 1928 में कांग्रेस अध्यक्षता छोड़ते समय मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी का सहारा लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल की जगह जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष पद दिलाकर पार्टी में वंशवादी नेतृव की बुनियाद डाल दी थी। आज़ादी के बाद अनेक नेता कांग्रेस अध्यक्ष रहे किन्तु पार्टी पर पकड़ नेहरू खानदान की ही रही। नेहरू परिवार की ताबेदारी न करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ एवं तपे-मंजे निष्ठावान कांग्रेसजनों को किस प्रकार अपमानित किया गया, यह भुलाया नहीं जा सकता। कांग्रेस के भीतर खुला वंशवाद पनपाने वाले चाटुकार नेता केवल गणेश परिक्रमा के सहारे राजनीति करते हैं। सीताराम केसरी को कैसे कुर्सी से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय से बाहर फेका गया था, इसे कौन भूल सकता है।

सोमवार को सी.डब्ल्यू.सी की बैठक का उद्देश्य भी कांग्रेसजनों तथा आम जनता को संदेश देना था कि डी.के.बरूआ का कथन- ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ आज भी प्रासांगिक है। नेहरू खानदान के किसी सदस्य के विचारों के विपरित विचार प्रकट करना गद्दारी होगी, आंतरिक लोकतंत्र चाहे भाड़ में जाए। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति और भारतीय जनता पार्टी के विरूद्ध शक्तिशाली प्लेटफॉर्म बनाने की बात कही थी जिसमे गलत कुछ न था किन्तु मैडम सोनिया और राहुल को इसमें बीजेपी की साजिश की बू आई और राहुल ने बैठक में चिट्ठी लिखने वालों को जमकर फटकार लगाई। राहुल के सर पर बीजेपी का फोबिया हर वक़्त सवार रहता है। तर्क के बजाय कुतर्क और शालीनता के बजाय छींटाकशी तथा दोषारोपण की भाषा के अभ्यस्त हैं। गुलामनबी आज़ाद एवं कपिल सिब्बल की साफ़गोई से तिलमिलाये राहुल ने पलटा मारा लेकिन कुमारी शैलजा को आगे कर दिया जिन्होंने चिट्ठी लिखने वाले नताओं को बीजेपी का एजेंट तक कह दिया। यह नेहरू परिवार की ख़ास अदा है। जिसे भी बेइज्ज़त करना हो, उनकी पालतू कठपुतलियां इसके लिए हरदम तैयार है।

सोनिया,प्रियंका और राहुल बदलते समय की आवाज़ सुनने को कतई तैयार नहीं। हाल ही में निष्ठावान युवा नेता सचिन पायलट ने हर अपमान को सहन कर ‘हाईकमान’ की बीजेपी से सांठगांठ की थ्यौरी को गलत सिद्ध कर दिया और पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा को कायम रख कर हाईकमान को चेताया भी लेकिन पार्टी नेतृव को मौरूसी अधिकार समझने वाले नेहरू परिवार सही बात सुनने को तैयार नहीं। इस हठधर्मी का ख़ामियाजा कांग्रेस ने भुगता है और आगे भी भुगतेगी।
कुछ फैसला तो हो किधर जाना चाहिए,
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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