सरकारी जमीनों की लूट!

समाचार है कि केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालयान ने जिला अधिकारी मुजफ्फरनगर को पत्र लिख सूचित किया है कि थाना भोपा के अन्तर्गत ग्राम बिहारगढ़ में वन विभाग की आवंटित भूमि के पट्टे की अवधि 2005 में समाप्त हो जाने के बावजूद सरकारी भूमि से अवैध कब्जा आजतक नहीं हटवाया गया है।

गौरतलब है कि कुछ दशकों पहले वन विभाग की कुछ ज़मीन पर खुशहाल नामक व्यक्ति ने अपनी झोपडी बना ली थी और धीरे-धीरे काफ़ी सरकारी ज़मीन पर कब्जा जमा लिया था। चूंकि ज़मीन महकमा जंगलात की थी इस लिए आम आदमी इस नाजायज हरकत से कुछ ख़ास परेशान नहीं हुआ लेकिन हैरत की बात है कि वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी जो एक गरीब चरवाहे को जंगल से खदेड़ देते हैं और झाड़ियां या टहनियां काट रहे लकड़हारे को जंगल में अवैध प्रवेश के आरोप में चालान काट देते हैं, ने इस अवैध कब्जे की ओर साल दर साल बीतने के बाद भी क्यों ध्यान नहीं दिया?

खुशहाल नामक इस शख्स का ज़मीन कब्जाने का दायरा भी बढ़ने लगा और कथित बड़े या मौज्जिज लोगों से उसका रसूख का रुतबा भी बढ़ने लगा। यहां तक कि झोपडी के बजाय मेहलात तामीर हो गए और बड़े-बड़े नेताओं, आई.ए.एस, आई.पी.एस अधिकारियों की गाड़ियां उनके इर्दगिर्द घूमने लगी और तो और महामहिम राज्यपाल के हेलीकॉप्टर भी यहां उतरने लगे। देखते-देखते खुशहाल पीर बाबा बन गए। वे लोगों को सादगी से रहने का उपदेश देते और बच्चों को मतब या मदरसों में पढ़ाने की सलाह देते और अपने बच्चों को आलीशान कार से शहर के मिशनरी स्कूल होली एंजिल्स भेजते थे। खुशहाल बाबा या खुशहाल पीर की असलियत का किसी को पता नहीं चला। उनके मूलनिवास, उनकी वल्दियत यहां तक चर्चाएं चलती रही कि वे पाकिस्तानी हैं या हिन्दुस्तानी किन्तु एल.आई.यू या सरकारी तौर पर कोई पहिचान या अधिकृत सूचना कभी नहीं मिल पाई।

उनके रसूख के कारण, करिश्मों के कारण या और किसी वजह से कब्जाई गई सरकरी भूमि का पट्टा लिखा गया ताकि कब्जे को नाजायज न माना जाए। सवाल सिर्फ अवैध कब्जे हटाने का नहीं हैं। प्रश्न यह है कि एक अज्ञात नाम पते का शख्स सरकारी भूमि कब्जाता है, उसका पट्टा लिखाता है, अदालत से मुकदमा हारने पर भी पंद्रह बरसों से अवैध कब्जा क्यों नहीं हटा? यह सारा प्रकरण हमारी सड़ी हुई निकम्मी नाकारा व्यवस्था का कच्चा चिट्ठा खोलती है। किसने खुशहाल को कब्जा करने दिया, किसने उसे सरकारी जमीन का पट्टा दिया। लखनऊ में अनेक अरण्यपाल आए और गए, मुजफ्फरनगर में अनेक कलक्टर तैनात और स्थानांतरित हुए। आखिर उनकी जिम्मेदारी क्या थी?

नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों तथा भूमाफियाओं की सांठगांठ के चलते न जाने कितने खुशहाल बाबा पैदा हुए। एक खबर है कि गाजियाबाद में भूमाफियाओं ने एक हज़ार करोड़ की सरकारी जमीन बेच खाई। जिलाअधिकारी अजय शंकर पांडेय ने इसकी जांच एस.डी.एम प्रशांत तिवारी को सौंपी है। प्राइमरी स्कूल के एक अध्यापक विजय सिंह बीस बरस से भी अधिक समय से मुजफ्फरनगर में धरने पर बैठे हैं। सरकारी भूमि हड़पने वाले को सज़ा देने की मांग कर रहे है। लखनऊ का रास्ता पैदल नापने और महात्मा गांधी की समाधि पर उपवास करना भी प्रभाव शून्य रहा। ज़मीन के लुटेरों और सिस्टम की नाकामी से आदमी परेशान-हैरान है:ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है खौफ़,डरते हैं ऐ ज़मीन तेरे आदमी से हम!

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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