सवाई माधोपुर: नगर परिषद में बड़ा फर्जीवाड़ा, टेंडर लेने के लिए फर्जी दस्तावेज जमा करा दिए

सवाई माधोपुर नगर परिषद भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल है, ये आरोप लगते रहते हैं। अब नगर परिषद के फर्जीवाड़े के इतिहास में एक पन्ना फर्जी डीडी का भी मामला जुड़ गया है। संवेदकों ने तत्कालीन कैशियर से सांठगांठ कर निर्माण के टेंडर लेने के लिए अमानता राशि के 56 लाख रुपये के बिना बैंक से जारी हुए फर्जी डीडी जमा करा दिए।

इसके फर्जीवाड़े की घटना का खुलासा तब हुआ, जब वर्तमान खजांची ने डिमांड ड्रॉफ्ट को संबंधित बैंक में जमा कराया। बैंक ने डीडी उनकी शाखा से जारी नहीं होना बताकर वापस लौटा दिया। मामला सामने आने के बाद परिषद आयुक्त ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन कर मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

56 लाख रुपये की राशि के लगभग 32 डीडी फर्जी मिले…
नगर परिषद अधिकारियों के अनुसार, कुल 56 लाख रुपये की राशि के लगभग 32 डीडी फर्जी होना सामने आया है। सभी डीडी बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा खिरनी के नाम से जारी होना दर्शाया गया है। यानि लगभग 32 संवेदकों ने अमानता राशि के फर्जी डीडी जमा करा लाखों के ठेके हथियाए हैं। जाली डीडी का यह खेल जाने कब से चल रहा था, पता नहीं। यदि यह मामला अब भी पकड़ में नहीं आता तो संभवतया मिलीभगत के चलते यह फर्जीवाड़ा चलता रहता और ठेकेदार बिना राशि जमा कराए फर्जी डीडी पेश कर लाखों के ठेके हथिया कर चांदी कूटते रहते। 

कैशियर ने सभी डीडी अपने पास पटके रखे…
साल 2017-18 में सवाई माधोपुर नगर परिषद सभापति डॉ. विमला शर्मा थीं। परिषद आयुक्त के पद पर जितेन्द्र शर्मा कार्यरत थे। वहीं, कैशियर का काम सलाम नामक कर्मचारी देख रहा था। संवेदक द्वारा टेंडर लेने के लिए अमानता राशि की डीडी जमा कराई जाती है और कैशियर द्वारा उन्हें नगर परिषद के खाते में भुगतान के लिए बैंक में जमा कराना होता है। लेकिन तत्कालीन खजांची ने ऐसा नहीं कर सभी डीडी अपने पास पटके रखे, जो उनकी संवेदकों से मिलीभगत उजागर करने के लिए काफी हैं। इतना ही नहीं कैशियर ने जिन संवेदकों के नाम टेंडर नहीं खुला, उन्हें डीडी वापस भी लौटा दिए। डीडी यदि बैंक में जमा होते, तो हो सकता है कि संवेदकों को लौटाए गए डीडी में से भी कई डीडी फर्जी पाए जाते।

नगर परिषद के वर्तमान कैशियर ने जब चार्ज संभाला तो तत्कालीन खजांची ने उन्हें ये डीडी सौंपे। जिन्हें कैशियर ने परिषद के खाते में भुगतान के लिए जमा कराया। परिषद के बैंक से डीडी लगाने के लिए बैंक ऑफ बडौदा शाखा खिरनी को भेजे गए। बीओबी खिरनी ने डीडी मिलने पर उनकी जांच की, तो उन्होंने डीडी अपने बैंक से जारी होने से मना कर दिया और वापस लौटा दिए। जब बैंक ने डीडी अपने होने से मना करते हुए वापस लौटाए, तो नगर परिषद अधिकारियों को डीडी फर्जी होने का पता चला और तुरत-फुरत में एक जांच कमेटी का गठन कर दिया। 

तीन सदस्यीय कमेटी कर रही जांच…
बीओबी खिरनी से डीडी वापस लौटाए जाने और डीडी जाली होना पाए जाने पर नगर परिषद आयुक्त होतीलाल मीना ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है। जांच कमेटी में परिषद की जूनियर अकाउंटेंट ऋतु, सहायक अभियंता रानावत और एलडीसी सलाम शामिल हैं। अब ये तीनों जांच कमेटी के सदस्य यह पता करेंगे कि डीडी किस-किस संवेदक के हैं। जांच के बाद रिपोर्ट परिषद आयुक्त को अग्रिम कार्रवाई के लिए सुपुर्द की जाएगी।

नगर परिषद आयुक्त होतीलाल का कहना है, निर्माण के 56 लाख रुपये की राशि के लगभग 32-33 डीडी (डिमांड ड्रॉफ्ट) फर्जी होना सामने आया है। साल 2017-18 के डीडी हैं, जिन्हें तत्कालीन कैशियर द्वारा अब तक भी जमा नहीं कराया गया था। नए कैशियर ने चार्ज लेने पर ये डीडी सामने आए, जिन्हें सिकरने के लिए बैंक में जमा कराया गया। सभी डीडी बीओबी खिरनी शाखा के हैं, जिन्हें बैंक ने खुद के यहां से जारी नहीं होना बताते हुए वापस लौटा दिए।

डीडी की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। जांच के बाद ही सामने आएगा कि डीडी किस-किस संवेदक के हैं। इसमें तत्कालीन कैशियर की मिलीभगत सामने आई है, जिन्होंने डीडी बैंक में जमा नहीं कराकर अपने पास पटके रखा। कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद ही अग्रिम कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। जबकि अग्रिण बैंक प्रबंधक श्योपाल मीणा का कहना है कि डीडी की मियाद महज 90 दिन होती है, उसके बाद उसे रिन्युअल करवाना होता है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here