राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में 15 जोड़े बनेंगे यजमान, इन नियमों का कर रहे हैं पालन

अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने में कुछ ही घंटे का समय शेष बचा है। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन अयोध्या शहर में होना है जिसके लिए शहर को खास तौर से सजाया गया है। अयोध्या के अलावा राम मंदिर को भी फूलों और दीयों से सुसज्जित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कुल 6000 से अधिक अतिथि इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में देशभर के विभिन्न जातियों और वर्गों के 15 दंपत्ती भी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में यजमान का कर्तव्य निभाते दिखाई देंगे। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने एक सूची शहर कर बताया है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में दलित, आदिवासी, ओबीसी और अन्य जातियों के कुल 15 जोड़े यजमान के तौर पर शामिल होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, ट्रस्ट अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई गणमान्य व्यक्तियों की मौजूदगी में राम मंदिर अभिषेक समारोह में ये सभी यजमान अनुष्ठान करेंगे।

ये हैं मुख्य यजमान

प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आरएसएस नेता अनिल मिश्रा और उनकी पत्नी ऊषा प्रधान मुख्य यजमान है। वो संगठन की अवध शाखा के सदस्य है। बता दें कि अनिल मिश्रा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के 15 ट्रस्टियों में से एक हैं। इस ट्रस्ट का निर्माण राम मंदिर की देखरेख के लिए 2020 में हुआ था।

बता दें कि जिन 15 दंपत्तियों को यजमान बनाया गया है वो सभी यजमान 22 जनवरी तक कठोर नियमों का पालन करेंगे। शास्त्रों में यजमान को लेकर जरुरी नियम बनाए गए है। इन सभी नियमों का दंपत्तियों को पालन करना होगा। इसी कड़ी में यजमान कई नियमों का भी पालन कर रहे है। 

– यजमान कई कठोर नियमों का पालन कर रहे हैं। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना होता है। बाहर का खाना वर्जित होता है। यजमान धूम्रपान भी नहीं कर सकते।

– क्रोध, अहंकार और मद का त्याग भी यजमान को करना होता है।

– यजमान को ऐसी चीजों से दूर रहना होता है जो मन को विचलित कर दे। इस दौरान ऐसी चीजों को देखने और सुनने की मनाही होती है जिससे मन विचलित हो।

– अनुष्ठान के दौरान सच का पालन करना चाहिए। इस दौरान मा व्रत का पालन करना भी जरूरी होता है।

– यजमानों को ब्राह्मणों को भी प्रसन्न करना चाहिए। अनुष्ठान के बाद ब्राह्मणों का आशीर्वाद लेना भी बेहद जरूरी बताया गया है।

– अनुष्ठान के दौरान यजमानों को आचार्य, ब्राह्मण के लिए कठोर वचन का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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