जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर 8.5 किलोमीटर लंबी बनिहाल-काजीगुंड टनल बनकर तैयार हो गई है। फिलहाल अत्याधुनिक उपकरणों की जांच प्रक्रिया जारी है, इसके पूरा होते ही टनल को इस माह के अंत तक आम यातायात के लिए खोल दिया जाएगा। ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड से बनाई गई टनल में निर्माण कंपनी को ट्रैफिक के ट्रायल रन की अनुमति मिल गई है। यह टनल जम्मू-श्रीनगर हाईवे के मौजूदा 270 किलोमीटर लंबे फासले को 16 किलोमीटर कम करेगी। साथ ही हर मौसम में यातायात संभव होगा।
2100 करोड़ रुपये की लागत से तैयार टनल में दो ट्यूब हैं और हर 500 मीटर के फासले पर दोनों ट्यूब के बीच कॉरिडोर बनाया गया है। यह आपात स्थिति के लिए इमरजेंसी एक्जिट प्वाइंट हैं। निर्माण कंपनी के मुख्य प्रबंधक मुनीब टाक ने बताया कि टनल में वेंटिलेशन और बिजली से जुड़े उपकरणों की जांच चल रही है। इसमें कुल 126 जेट फैन, 234 सीसीटीवी कैमरे, फायर फाइटिंग सिस्टम स्थापित किया गया है।
यह टनल हाईवे के मौजूदा रूट पर स्थित जवाहर टनल और शैतानी नाला को बाइपास करेगी। यह दोनों ही स्थान मौसम खराब होने पर यातायात के लिए सबसे बड़ी बाधा बन जाते हैं। खासकर बर्फबारी में आवाजाही रोक दी जाती है। टनल को जनसमर्पित करने से पूर्व तमाम पहलुओं की गहन जांच की जा रही है, जिसके पूरा होते ही टनल का लोकार्पण कर दिया जाएगा।
जवाहर टनल से 400 मीटर नीचे तैयार की गई है नई सुरंग
कश्मीर संभाग को देश से जोड़ने वाले एकमात्र आल वेदर रोड बनिहाल दर्रे से गुजरती है। जवाहर टनल के पास हाईवे की समुद्रतल से ऊंचाई 2194 मीटर (7198 फुट) है। बनिहाल-काजीगुंड टनल जवाहर टनल से ऊंचाई में 400 मीटर नीचे है। नई टनल की औसत ऊंचाई 1790 मीटर (5870 फुट) है। वर्तमान हाईवे पर बर्फीले तूफान और हिमस्खलन का खतरा बना रहता है। नई टनल इन तमाम चुनौतियों को बाइपास कर श्रीनगर से बनिहाल तक के रास्ते को एक्सप्रेसवे में तब्दील कर देगी।
मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों में टनल निर्माण में लगे 10 साल
बनिहाल दर्रे की भौगोलिक स्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसी के चलते टनल निर्माण में दस साल लग गए। वर्ष 2011 में शुरू हुआ निर्माण अब जाकर पूरा हुआ है। हालांकि, भूमि हस्तांतरण, श्रमिकों की देनदारी से जुड़े पहलु भी सामने आए, लेकिन निर्माण कंपनी के सूत्रों ने बताया कि निर्माण देरी के लिए भौगोलिक स्थितियां सबसे बड़ा कारण रही। सर्दी के सीजन में यहां काम करना मुश्किल भरा रहा।