देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के 25 डिप्टी कमांडेंट (डीसी) को नववर्ष के पहले ही दिन पदोन्नति का तोहफा मिल गया है। इन्हें ‘सेकंड इन कमांड’ (टू-आईसी) बनाया गया है। अभी ये अधिकारी जिस भी यूनिट, बटालियन या प्रतिनियुक्ति पर किसी दूसरे बल में तैनात हैं, उन्हें वहीं पर नया रैंक दे दिया गया है। पदोन्नति मिलने के फौरन बाद इन अधिकारियों का तबादला नहीं किया जाएगा। इसे लेकर सीआरपीएफ मुख्यालय बाद में आदेश जारी करेगा। सीआरपीएफ के डीसी, लंबे समय से इस पदोन्नति का इंतजार कर रहे थे।
चार अफसरों को शील्ड कवर में पत्र
इस पदोन्नति का आदेश 31 दिसंबर 2021 को जारी हुआ है। पदोन्नत किए गए 25 डिप्टी कमांडेंट में से चार अधिकारियों को ‘शील्ड कवर’ में पत्र मिला है। इसका मतलब है कि इन अफ़सरों से संबंधित कोई विभागीय औपचारिकता बाकी है। यह भी हो सकता है कि किसी मामले में इन अधिकारियों के खिलाफ जांच चल रही हो। उन्हें अपने बल मुख्यालय से विजिलेंस क्लीयरेंस न मिली हो। जिन अधिकारियों को ‘शील्ड कवर’ में पत्र मिला है, उनमें बिपिन कुमार, विवेक कुमार सिंह, अनामी शरण और रितेश कुमार सिंह का नाम शामिल है।
अन्य अधिकारी, जो टू-आईसी बने हैं, उनमें संजय कुमार, गजेंद्र बहादुर सिंह, राजेश कुमार सिंह, कुलदीप सिंह चाहर, संजीव कुमार सिंह, अजय दलाल, अरीच्छे एंथोनी महिओ, अरुण कुमार, विवेकानंद सिंह, अरुण कुमार सिंह, अयोध्या सिंह, राजीव सिंह, अरविंद सिंह यादव, श्याम कुमार चौधरी, इथापे पंडित कृष्ण राव, विक्रम कुमार, सदन कुमार, राजेंद्र कुमार, रामेश्वर यादव, पवन कुमार और सुबोध कुमार शामिल हैं। अब इन अफसरों की पदोन्नति होने के बाद सहायक कमांडेंट को डिप्टी कमांडेंट बनाया जाएगा। हालांकि ‘पदोन्नति’ नीति को लेकर कैडर अफसर खुश नहीं हैं।
12 से 15 साल में प्रमोशन
सीआरपीएफ के अनेक कैडर अधिकारी पदोन्नति में देरी, ओजीएएस और एनएफएफयू को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में भी इसे लेकर कई मामले लंबित हैं। अदालत के हस्तक्षेप से ही कैडर अधिकारियों को एनएफएफयू का फायदा मिल सका है। बल में मौजूदा पदोन्नति का स्तर ऐसा है कि सहायक कमांडेंट के पद पर भर्ती हुआ अधिकारी 30 साल बाद ही डीआईजी बन पाता है। बहुत से कैडर अधिकारी ऐसे भी हैं, जो कुछ ही समय तक डीआईजी रहे और रिटायर हो गए। कमांडेंट बनने के लिए 20 साल से ज्यादा वक्त लग रहा है। सहायक कमांडेंट के बाद पहला प्रमोशन डिप्टी कमांडेंट का होता है, आज की स्थिति में दूसरा रैंक लेने के लिए कैडर अफसरों को 12 से 15 साल का वक्त लग जाता है। नतीजा, अनेक कैडर अधिकारी त्यागपत्र देकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में जॉब करने को मजबूर हैं।