इन दिनों कांग्रेस भ्रष्टाचार और बड़े वित्तीय घपले में राहुल गाँधी के फंसने से बहुत बेहाल है। परेशानी का आलम यह है कि पेशी राहुल गाँधी की होती है, पहुंच जाते हैं ईडी दफ्तर कांग्रेस के दिग्गज नेतागण और रोबोटों का समूह। ईडी दफ्तर में जबरन घुसने की कोशिश करते हैं। खैर अब राहुल गाँधी को अचानक याद आया कि सब कुछ एसोसिएटेड जनरल्स लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन मोतीलाल वोरा का कियाधरा है। उन्होंने (राहुल) तो बिना सोचे समझे सभी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए। प्रवर्तन निदेशालय वाले राहुल से नहीं कह सकते कि वोरा साहब को बुला लाओ क्योंकि वे तो अरसा पहले खुदा को प्यारे हो चुके हैं। यह तो ईडी का काम है कि वह इस बहाने को स्वीकार करे या नामंजूर करे।
मामला ब्रिटिशकाल से शुरू होता है। बर्तानिया हुकूमत के दौरान ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ व ‘स्टेटसमैन’ जैसे अखबार अंग्रेजों के पिट्ठू थे, लिहाजा तय हुआ कि आजादी चाहने वालों का भी एक दैनिक अखबार हो। तय हुआ कि चंदा इकट्ठा कर एक अंग्रेजी अखबार छापा जाये। यद्यपि इलाहाबाद (प्रयागराज) से राष्ट्रवादी विचारों का अंग्रेजी अखबार ‘लीडर’ छपता था जिसके संपादक सी.वाई. चिंतामणि थे। अतः स्वराज समर्थकों ने एसोसिएटेड जनरल्स कंपनी बना कर “नेशनल हेराल्ड” का लखनऊ से प्रकाशन शुरू किया। तब उसके 5000 शेयर होल्डर बनाये गए थे। मुज़फ्फरनगर के पंडित ब्रह्मप्रकाश शर्मा एडवोकेट, डॉक्टर बाबूराम गर्ग, द्वारिका प्रसाद (अखबार वाले), डॉक्टर रामनाथ वर्मा आदि भी शेयर होल्डर बने थे। पंडित ब्रह्मप्रकाश शर्मा बहुत समय तक ‘नेशनल हेराल्ड’ के संवाददाता रहे। चूँकि पंडित जवाहरलाल नेहरू ‘नेशनल हेराल्ड’ के संपादक थे और बाद में उनके दामाद फिरोज गाँधी उसके संपादक बने तथा फिरोज साहब के संपादक पद छोड़ने के बाद नेहरू जी के पसंदीदा एम. चलपतिराव संपादक बने, इसलिए यह माना जाने लगा कि नेशनल हेराल्ड नेहरू जी का ही अखबार है। शेयर होल्डर्स को बिजनेस या पैसों का कोई लालच नहीं था। जिस तरह कांग्रेस पर नेहरू परिवार का आधिपत्य रहा, उसी तरह नेशनल हेराल्ड पर भी नेहरू परिवार का आधिपत्य हो गया। एसोसिएटेड जनरल्स के किसी शेयर होल्डर ने इस पर विरोध नहीं किया। नेहरू जी के बाद इंदिरा गाँधी ने अपने चहेते यशपाल कपूर को एसोसिएटेड जनरल्स का चेयरमैन बनाया। यशपाल कपूर के चेयरमैन बनते ही ‘नेशनल हेराल्ड’ का भट्टा बैठ गया। कई-कई महीनों पत्रकार व गैर पत्रकार कर्मचारियों के वेतन नहीं दिए गए। उर्दू कौमी आवाज के सब एडिटर, रिपोर्टर व कातिब लखनऊ लालबाग स्थित हेराल्ड प्रेस के सामने प्रदर्शन करने को मजबूर हुए।
यशपाल कपूर के बाद नेहरू परिवार के विश्वस्त मोतीलाल वोरा एसोसिएटेड जनरल्स के चेयरमैन बने। वे पत्रकार थे लेकिन पत्रकार से पहले नेहरू-गाँधी परिवार के वफादार थे। असल में नेहरू-गाँधी परिवार की दिलचस्पी ‘नेशनल हेराल्ड’ में न होकर उसकी अचल संपत्ति (जमीन) में थी जिसकी कीमत करोड़ो में नहीं, अरबों रुपयों में है।
अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन के सन 1986 के भोपाल अधिवेशन में मैं तथा भाई सतीश बिंदल जी (संपादक उत्तराखंड टाइम्स) सम्मिलित हुए थे। तब वोरा जी ने सभी प्रतिनिधियों को प्रीतिभोज पर निमंत्रित किया था। भोपाल प्रवास में हम लोग ‘नेशनल हेराल्ड’ भवन भी गए थे जो कई बीघा जमीन पर फैला था, यद्यपि कवर्ड एरिया बहुत कम था किन्तु भूमि बहुत ज्यादा थी। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 2000 करोड़ की संपत्ति के हेरफेर की शिकायत दर्ज कराई थी किन्तु केवल लखनऊ और भोपाल की जमीन ही अरबों रूपए की है। रांची, पंचकुला, मुंबई आदि की कुल जमीन की कीमत तो कहीं ज्यादा होगी, जिस पर कब्जे को लेकर यह घपला हुआ।
कुल मिलाकर सारा मामला अखबार या पत्रकारों के हितों से नहीं बल्कि अरबों रुपये की संपत्ति से जुड़ा है। देखना है कि नतीजा क्या निकलता है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’