प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को दिल्ली की एक अदालत में बताया कि नेशनल हेराल्ड प्रकरण में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य के खिलाफ प्रथम दृष्टया मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनता है। यह बयान विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने के समक्ष उस समय दिया गया, जब एजेंसी ने आरोपों पर प्रारंभिक दलीलें पेश कीं।
सुनवाई के दौरान अदालत ने ईडी को निर्देश दिया कि वह इस मामले से जुड़ा आरोपपत्र भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी को भी उपलब्ध कराए, जिनकी निजी शिकायत पर यह जांच शुरू हुई थी। फिलहाल इस मामले पर बहस जारी है।
ईडी का आरोप: अवैध रूप से संपत्ति पर कब्जा
ईडी की जांच के अनुसार, आरोपितों ने कथित रूप से नेशनल हेराल्ड से जुड़ी 751.9 करोड़ रुपये की संपत्ति पर नियंत्रण बनाए रखा और इसे तब तक इस्तेमाल किया जब तक एजेंसी ने नवंबर 2023 में संपत्ति जब्त नहीं कर ली। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया मनी लॉन्ड्रिंग के दायरे में आती है।
ईडी का कहना है कि न सिर्फ अवैध संपत्ति अर्जित की गई, बल्कि उसका नियंत्रण भी बरकरार रखा गया। एजेंसी ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा, सुमन दुबे सहित अन्य के खिलाफ शुरुआती तौर पर आपराधिक धन शोधन का मामला बताया है।
क्या है नेशनल हेराल्ड मामला?
यह मामला 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक निजी आपराधिक शिकायत से शुरू हुआ था। जांच का फोकस इस बात पर है कि कैसे कांग्रेस से जुड़ी यंग इंडियन लिमिटेड (YIL) ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) का अधिग्रहण किया, जो पहले नेशनल हेराल्ड अखबार प्रकाशित करता था।
2008 में आर्थिक संकट से जूझ रही एजेएल ने अपना प्रकाशन बंद कर दिया। दो साल बाद वाईआईएल की स्थापना हुई, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी थी। कांग्रेस पार्टी ने एजेएल को दिए गए 90.25 करोड़ रुपये के कर्ज को महज 50 लाख रुपये में वाईआईएल को ट्रांसफर कर दिया। इससे एजेएल का लगभग 99 फीसदी स्वामित्व वाईआईएल को मिल गया।
ईडी का आरोप है कि यह हस्तांतरण किसी नियामक संस्था या एनसीएलटी की निगरानी में नहीं हुआ, जिससे पूरे सौदे की वैधता पर सवाल उठने लगे।