बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अब इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जून को जारी आदेश को चुनौती देते हुए उसे असंवैधानिक करार देने की मांग की है।
मोइत्रा की याचिका में कहा गया है कि यह आदेश संविधान के कई महत्वपूर्ण अनुच्छेदों—जैसे अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 21, 325 और 328—के साथ-साथ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960 का उल्लंघन करता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह इस आदेश को रद्द करे ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और स्वतंत्र चुनाव प्रणाली की रक्षा की जा सके।
महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश को निरस्त नहीं किया गया, तो देशभर में बड़ी संख्या में पात्र मतदाताओं के मताधिकार पर खतरा मंडरा सकता है। उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि सुप्रीम कोर्ट, निर्वाचन आयोग को देश के अन्य राज्यों में भी इस तरह की प्रक्रिया लागू करने से रोके।
वरिष्ठ अधिवक्ता नेहा राठी के माध्यम से दायर याचिका में यह तर्क दिया गया है कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि जिन नागरिकों के नाम पहले से मतदाता सूची में हैं, उनसे अपनी पात्रता को दोबारा सिद्ध करने के लिए कहा जा रहा है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह संविधान के अनुच्छेद 326 के विपरीत है और मतदाता पात्रता की ऐसी अतिरिक्त शर्तें भारत के चुनावी कानूनों के तहत नहीं हैं।
गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) नामक एक गैर सरकारी संगठन ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने भी बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी है।
चुनाव आयोग ने 24 जून को यह आदेश इसलिए जारी किया था ताकि मतदाता सूचियों से अपात्र नामों को हटाया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य नागरिक ही मतदान कर सकें। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनज़र यह प्रक्रिया शुरू की गई थी।
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