75 वर्ष बाद चाचा-भतीजे की करतारपुर में हुई भेंट

एक साल पहले पाकिस्तान स्थित स्वतंत्र पत्रकार जावेद मोहम्मद ने पाकिस्तान में साहीवाल जिले के चक-37 गांव में उनके घर जाकर मोहन सिंह (82) का वीडियो बनाया था। मोहम्मद को यह जानकर झटका लगा कि मोहन सिंह बंटवारे के समय अपने परिवार से अलग हुए थे लेकिन तब वे अपने परिवार के एक बार भी नहीं मिल सके। मोहन सिंह ने मोहम्मद को अपने 92 वर्षीय चाचा सरवन सिंह के बारे में बताया। सरवन सिंह भारतीय पंजाब में जालंधर जिले से 25 किलोमीटर दूर भउद्दीनपुर में रहते हैं।

अब पंजाब के रहने वाले 92 वर्षीय बुजुर्ग पाकिस्तान में रहने वाले अपने भतीजे से सोमवार को मिले। बंटवारे के वक्त बिछड़ जाने के 75 साल बाद दोनों की मुलाकात हुई। उस समय हो रहे सांप्रदायिक दंगों में उनके कई रिश्तेदार भी मारे गए थे। सरवन सिंह अपने भाई के बेटे मोहन सिंह से ऐतिहासिक गुरद्वारे करतारपुर साहिब में मिलेंगे। अब पाकिस्तान में स्थित करतारपुर में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अंतिम समय बिताया था।

सरवन सिंह के नवासे परविंदर ने पीटीआई को फोन पर बताया, “नानाजी आज बहुत खुश हैं, क्योंकि वह करतारपुर साहिब में अपने भतीजे से मिलने जा रहे हैं।” परविंदर ने बताया कि विभाजन के समय मोहन सिंह छह साल के थे और वह अब मुस्लिम हैं, क्योंकि पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला-पोसा था। दोनों रिश्तेदारों के 75 साल बाद मिलने में भारत और पाकिस्तान के दो यूट्यूबर ने अहम भूमिका निभाई है।

जंडियाला के यूट्यूबर ने विभाजन से संबंधित कई कहानियों का दस्तावेजीकरण किया है और कुछ महीने पहले उन्होंने सरवन सिंह से मुलाकात की और उनकी जिंदगी की कहानी अपने यूट्यूब चैनल पर पोस्ट की। सीमापार, एक पाकिस्तानी ट्यूबर ने मोहन सिंह की कहानी बयां की जो बंटवारे के वक्त अपने परिवार से बिछड़ गए थे। संयोग से, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले पंजाबी मूल के एक शख्स ने दोनों वीडियो देखे और रिश्तेदारों को मिलाने में मदद की।

एक वीडियो में सरवन ने बताया कि उनके बिछड़ गए भतीजे के एक हाथ में दो अंगूठे थे और एक जांघ पर बड़ा सा तिल था। परविंदर ने बताया कि पाकिस्तानी यूट्यूबर की ओर से पोस्ट किए गए वीडियो में मोहन के बारे में भी ऐसी ही चीजें साझा की गईं। बाद में ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले शख्स ने सीमा के दोनों ओर दोनों परिवारों से संपर्क किया। परविंदर ने कहा कि नानाजी ने मोहन को उनके चिन्हों के जरिए पहचान लिया।

सरवन का परिवार गांव चक 37 में रहा करता था जो अब पाकिस्तान में है और उनके विस्तारित परिवार के 22 सदस्य विभाजन के समय हिंसा में मारे गए थे। सरवन और उनके परिवार के सदस्य भारत आने में कामयाब रहे थे। मोहन सिंह हिंसा से तो बच गए थे लेकिन परिवार से बिछड़ गए थे और बाद में पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला पोसा।

सरवन अपने बेटे के साथ कनाडा में रहते हैं, लेकिन कोविड-19 के कारण वह जालंधर के पास सांधमां गांव में अपनी बेटी के यहां फंसे हुए हैं। परविंदर ने कहा कि उनकी मां रछपाल कौर भी सरवन के साथ करतारपुर गुरुद्वारा गई हैं।

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