खट्टर की रवानगी से आगे !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 मार्च को गुरुग्राम के सेक्टर 84 में विशेष कार्यक्रम में 8 लेन वाले द्वारका एक्सप्रेसवे के 19 किलो मीटर लम्बे हरियाणा खंड का उद्घाटन किया। इसी के साथ 16 राज्यों में 20,500 करोड़ रूपये की लागत से निर्मित 42 परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया। श्री मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के अपने संकल्प के विषय में जो कुछ कहा, उसे करोड़ों लोगों ने टीवी पर देखा और सुना है।

लोकापर्ण शिलान्यास के इस भव्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के कार्यों की प्रशंसा की। इतना ही नहीं श्री मोदी ने खट्टर साहब के साथ अपने हरियाणा प्रवास के अनुभव सुनाए और बताया कि हम दोनों कैसे दरी बिछा कर एकसाथ सोते थे और मैं उनकी मोटर साइकिल के पीछे बैठ कर गुड़‌गांव आता था।

ये सब कल की बातें हैं और आज मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री पद से विदा हो गये। उनके स्थान पर हरियाणा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष तथा कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी नये मुख्यमंत्री नियुक्त हो गए।

कल इतनी प्रशंसा और आज रवानगी? यह एक दम नहीं हो सकता। खट्टर जी के साथ ही आज वर्षों से गठबंधन के नाम पर निरन्तर दबाव बनाने वाले दुष्यन्त चौटाला का भी पत्ता कटा बल्कि खुद को शैडो चीफ मिनिस्टर समझने वाले अनिल विज भी घर जा बैठे।

लम्बे समय से हरियाणा के संबंध में यह धारणा बना दी गई कि हरियाणा में तो जाटों की हुकूमत चलेगी, भले ही उनकी जनसंख्या 22 प्रतिशत ही क्यों न हो। चाहे किसी भी दल का हो मुख्यमंत्री जाट ही बनेगा। मनोहर लाल खट्टर ने इस मिथक को तोड़ा किन्तु सत्ता पर जाटों के आधिपत्य की मुहिम बंद नहीं हुई। बीरेंद्र सिंह को केन्द्र में मंत्री बना कर और राज्य‌सभा देकर भाजपा ने सत्ता पर जाटों के एकाधिकार की कामना को तोड़ना चाहा किन्तु वे मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी बने रहे। भाजपा में रहते हुए जाट आरक्षण आन्दोलन को हवा देते रहे जिसमें पंजाबी व गैर जाट वर्ग की दुकानों बाजारों को चिह्नित करके फूंका गया। दिल्ली का घेराव हो या महिला पहलवानों का आंदोलन, बीरेंद्र सिंह हों या उनके पुत्र बृजेन्द्र सिंह, मोदी व खट्टर सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने में लगे रहे। चौटाला व हुड्डा परिवार की यही रणनीति है।

जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार, जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती व अब्दुल्ला, बिहार में लालू सत्ता पर अपना एकाधिकार चाहते हैं, ऐसे ही हरियाणा में दो परिवार जाटों को आगे कर सत्ता पर कब्जा चाहते हैं। 78 प्रतिशत गैर जाट कहां जायें? जाटों का आधिपत्य स्वीकार करें या वे भी सत्ता में भागीदार बनें। यही हरियाणा की राजनीतिक गुत्थी है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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