हर मुद्दे को संघर्ष की धार देने में माहिर थे अंजान

लखनऊदेश में हो रहे लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल चुनावी प्रचार में जुटे हुए हैं। लेकिन शुक्रवार को देश ने एक बड़े नेता को खो दिया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी CPI के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अंजान की लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई है। अतुल अंजान की मौत के बाद राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। भारतीय राजनीति का एक जाना पहचाना नाम अतुल कुमार अंजान की मौत को एक बड़ी क्षति माना जा रहा है। बता दें, 70 वर्षीय सीपीआई नेता अतुल कुमार अंजान लंबे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। शुक्रवार को सुबह तड़के 3:45 बजे अंतिम सांस ली है। उन्हें लखनऊ के गोमतीनगर स्थित मेयो अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

वामपंथी राजनीति का एक बड़ा चेहरा थे अंजान

अतुल कुमार अंजान एक वरिष्ठ सीपीआई नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव थे। वे अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव भी थे। छात्र राजनीति से राजनीतिक सफर तय करने वाले अतुल अंजान को वामपंथी राजनीति में बड़ा चेहरा माना जाता था।

लखनऊ में हुई स्कूलिंग

सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अंजान की स्कूली शिक्षा लखनऊ से हुई है। उन्होंने लखनऊ के राज्य बोर्ड स्कूल से अपनी स्कूलिंग की थी। इसके बाद अतुल अंजान ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से 1967 में ग्रेजुएशन, 72 में पोस्ट ग्रेजुएशन और 1983 में एलएलबी की पढ़ाई की है। अंजान ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष थे। सीपीआई नेता अतुल कुमार अंजान के पिता डॉ. एपी. सिंह एक वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने एचएसआरए (हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) की कार्रवाइयों में भाग लिया था, जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश जेल में लंबी सजा काटी थी। अतुल कुमार अंजान घोषी लोकसभा सीट से कई बार चुनाव लड़

चुके है। लेकिन उन्हें हर चुनाव में हार का सामना करना लड़ा। 2014 लोकसभा चुनाव में अंजान को घोषी सीट पर मात्र 18 हजार के आसपास वोट मिले थे।

4 बार लखनऊ विवि के अध्यक्ष चुने गए

20 के दशक की शुरुआत में अतुल कुमार अंजान नेशनल कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। छात्रों की चिंताओं की आवाज़ उठाने लिए सीपीआई नेता अतुल कुमार ने लगातार चार बार लखनऊ विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे। करीब आधा दर्जन भाषाओं में कुशल वक्ता अंजान अपने विश्वविद्यालय के दिनों में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे।

अंजान उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध पुलिस-पीएसी विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे। अंजान ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान चार साल नौ महीने जेल में बिताए थे। अपनी राजनीतिक और वैचारिक दृढ़ता और छात्र आंदोलनों का नेतृत्व करने की क्षमता के कारण वे 1979 में लुधियाना सम्मेलन में एआईएसएफ के अध्यक्ष बने और 1985 तक इस पद पर बने रहे।

इसके बाद 1992 में हैदराबाद में आयोजित 15वीं कांग्रेस में राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के लिए चुने गए और 1995 में दिल्ली में आयोजित 16वीं कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिवालय के सदस्य नियुक्त किए गए थे। वे अपनी अंतिम सांस तक उस पद पर बने रहे। उन्होंने साल 1997 में त्रिशूर राष्ट्रीय सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव बने और साल 2001, 2006, 2010 और 2016 में भी इसी पद पर निर्वाचित हुए। वे किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्ध थे। स्वामीनाथन आयोग के एकमात्र किसान सदस्य के रूप में उनका योगदान उल्लेखनीय था, जिसमें किसानों की उपज के लिए एमएसपी सहित कई सिफारिशें की गई थीं।

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