रिपब्लिक भारत के मुख्य संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी और उनके सास-ससुर, पत्नी व बेटे के साथ पुलिस की बदसलूकी व मारपीट के समाचार से अत्यधिक क्षोभ, दुःख, अफ़हसोस तो महसूस हुआ किंतु आश्चर्य नहीं हुआ। शिवसेना, कांग्रेस और कुछ एनसीपी नेता भी श्री गोस्वामी से खार खाए बैठे थे। सत्ता में आते ही शिवसेना ने अपने आलोचकों तथा विरोधियों को सबक सिखाने का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। इसके लिए पुलिस व प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग करने में कोई शर्म-हया नहीं बरती गई। महाराष्ट्र में आला पुलिस अफ़सरान को निजी चाकरों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। रिपब्लिक भारत के पत्रकारों, कैमरामैन व वरिष्ठ संपादक को जिस प्रकार प्रताड़ित किया जा रहा है वह सत्ता का घृणिनतम की कुकृत्य है।
यह कारनामा वो लोग करते हैं जो सहिषुणता, लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देते नहीं थकते। मुंबई के पुलिस कमिश्नर का आचरण उच्च पद की गरिमा को गिराने वाला है। पत्रकार की आलोचना को हज्म न कर सकने वाले नेता व अधिकारी खुद को इंतकाम की आग में झुलसा बैठे हैं। इसका दुषपरिणाम उन्हें देर-सवेर अवश्य भुगतना पड़ेगा।
हमें महाराष्ट्र के शासकों के रवैये पर हैरानी नहीं क्योंकि बन्दर के हाथ में उस्तरा देने का यही अंजाम होता है लेकिन उन लोगों की चुप्पी पर अफ़सोस है जो हर वक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग अपलाते रहते थे।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’