भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान का शुक्रवार तड़के लखनऊ के गोमतीनगर स्थित मेयो अस्पताल में निधन हो गया। 70 वर्षीय वामपंथी नेता कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे।
यह अजीब संयोग था कि शुक्रवार, 3 मई को ही मुजफ्फरनगर कम्युनिस्ट पार्टी के जिला मंत्री शाहनवाज खान अंजान साहब की बीमारी के विषय में मुझे बता रहे थे। श्री खान लखनऊ में बीमार वामपंथी नेता से कई बार मिले थे और बता रहे थे कि एक हष्टपुष्ट जुझारू नेता बीमारी के कारण अत्यधिक दुर्बल हो चुका है। शाहनवाज खान देर तक अंजान साहब की कर्मठता और उनकी संघर्षगाथा सुनाते रहे। उन्होंने बताया कि एक दशक पूर्व भारत यात्रा के दौरान वे मुजफ्फरनगर आये थे इसके पश्चात भी पार्टी के कार्यक्रमों में कई बार मुजफ्फरनगर आये थे। शाहनवाज और मुझे तब तक अंजान साहब के निधन की दुःखद खबर नहीं मिली थी। कल शाम को पता चला कि वे अनंत यात्रा पर चले गए। उनके विचारों तथा नीतियों से सहमत न होते हुए भी एक संघर्षशील नेता के निधन पर दुःख प्रकट करते हैं।
दूसरे वामपंथियों की भांति वे भी सभी समस्याओं की जड़ पूंजीवाद को मानते थे। वे एक झटके से व्यवस्था को बदलने की इच्छा रखते थे हालांकि उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि माओवादियों की तरह सत्ता बैलेट से नहीं, बुलेट से प्राप्त होती है। अपने ओजस्वी और क्रांतिकारिता भरे विचारों के जरिये उन्होंने नौजवानों को प्रभावित किया और चार बार लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए लेकिन चुनावी राजनीति में उनके पाँव कभी नहीं जमे। वे सीपीआई टिकट पर घोसी से बार-बार चुनाव लड़े और बार-बार हारे।
कथित काले कृषि कानूनों के विरुद्ध चले दिल्ली घेरो आन्दोलन में उन्होंने भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत की पीठ थपथपाई और आशा प्रकट की कि आन्दोलन से फासिस्ट ताकतों का तख्ता पलट जायगा। श्री अंजान ने किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की ज़ोरदार मांग की थी।
भारत में धीरे-धीरे अपनी जमीन खोती जा रही कम्युनिस्ट पार्टी के लिए अतुल कुमार अंजान का निधन बड़ी क्षति है। पीड़ितों, वंचितों और पसमांदा तबकों के लिए दमदार आवाज उठाने वाला नेता चला गया। हमारी शोक श्रद्धांजलि!
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’