जय हो ! जय हो ! गणतंत्र की जय हो !!

73वें गणतंत्र दिवस पर आपने दूरदर्शन पर देखा होगा कि कैसे 40 डिग्री माइनस तापमान में हमारे वीर जवान 15 हज़ार फीट पर बर्फ की चट्टानों के बीच तिरंगा लहरा रहे हैं, देश के गद्दारों और पेशेवर ढोंगी कथित सेक्यूलर नेताओं ने कश्मीर में तिरंगा न फहराने की धमकियां दी थीं, वहां बर्फ से ढकी सड़कों पर कश्मीरियत और भारतीयता का डंका बजाने वाले नन्हें-नन्हें बच्चे तिरंगा लहराते चल रहे हैं और आतंक का गढ़ कहे जाने वाले श्रीनगर के लाल चौक पर किस आन-बान और शान से राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे हैं।

आपने यह भी देखा होगा कि आजादी के 75वें अमृत महोत्सव पर देश के राष्ट्रीय समर स्मारक में देश की आजादी से पूर्व और आजादी के पश्चात शहीद भारतीय रणबांकुरे को सम्मिलित रूप से श्रद्धांजलि अर्पित कर देश की 135 करोड़ जनता की ओर से श्रद्धा सुमन अर्पित किये गए। राजपथ पर सेना के सामर्थ का प्रदर्शन और देश की विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक संस्कृति की झलक भी देखी ही होगी। कैसे कोरोना जैसी अंतरराष्ट्रीय आपदा से जीवन और जीविका बचाते हुए विश्व पटल पर भारत अपनी धमक बना रहा है, यह भी देखा होगा।

इसी के साथ गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आपने महामहिम राष्ट्रपति जी की अपील भी सुनी होगी कि देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करने के लिए अधिकारों के साथ कर्तव्य पालन पर ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री का ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का आह्वान भी सुना होगा।

जिस गणतंत्र दिवस का हम गुणगान करते हैं वह तो उस समय भी मौजूद था। जब सिकन्दर ने 326 ईस्वी में भारत पर हमला किया। बौद्ध कालीन युग में भी लिच्छवी गणराज्य मौजूद था। वैदिक काल में गणतंत्र व्यवस्था मौजूद थी जिसका उल्लेख ऋग्वेद के 107वें तथा 108वें मंत्र में है। महाभारत में हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ गणराज्यों का उल्लेख है। विदेशी इतिहासकारों डियोडोरस सिकुलस तथा पुलित्जर एरियन ने शिलालेखों, पुरालेखों के आधार पर प्राचीन भारत में गणतांत्रिक व्यवस्था की पुष्टि की है।

आज का यक्ष प्रश्न है कि क्या देश में वास्तविक गणराज्य है? राजनीति के छत्रप या कटुशब्द में कहें तो ठेकेदार धनबल, बाहुबल, जातिबल और जुमलेबाजी के सहारे अपने पिट्ठुओं का चयन कर लेते हैं और फिर मतदाताओं से कहते हैं- हमने तो इन्हें चुन लिया, अब तुम भी इन पर वोट का ठप्पा लगा दो। छत्रप जिन्हें चुनें हमे यानि जनता को उन्हीं में से किसी को चुनना है, चाहे उस पर 104 मुकदमे हों, 43 मुकदमे हों या 17 मुकदमे हों। कहा जाता है कि वे लोकतंत्र के, गरीबों के, वंचितों के रक्षक हैं चाहे बलात्कार, अपहरण, रंगदारी, सरकारी-गैरसरकारी संपत्ति कब्जाने, मूठमर्दी-गुंडागर्दी में जेल में बंद हों, इन्हें चुन लो हम तुम्हें चुनाव के बाद खुश कर देंगे, मालामाल कर देंगे। निर्वाचन आयोग, सुप्रीम कोर्ट सब इस व्यवस्था को स्वीकार करते हैं तो जनता भी इस कुव्यवस्था को मजबूरन स्वीकार करती है। गणतंत्र के इस ढोंग को शायद जनता की क्रांतिकारिता ही बदल सकेगी। लोकराज के लिए हम ऐसा समय शीघ्र आने की कामना करते हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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