सुप्रीम कोर्ट की केंद्र सरकार को बड़ी चेतावनी, आरक्षण की राशि हवा में निर्धारित नहीं की जा सकती

सुप्रीम कोर्ट गरीबों को दिए आरक्षण से जुड़े नियमों को लेकर केंद्र सरकार से नाराज है। उसने कहा है कि सरकार ने अगर आर्थिक तौर पर पिछड़े (EWS) यानी गरीबों को आरक्षण देने के लिए 8 लाख रुपए की आय सीमा तय करने का आधार नहीं बताया तो वह आरक्षण पर रोक लगा देगी। 


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हवा में से 8 लाख रुपए नहीं चुन सकते और उसके आधार पर नियम तय नहीं कर सकते। इसका कोई तो आधार होना चाहिए। कोई स्टडी ही दिखा दो। हमें बताइए, अगर आपने कोई जनसांख्यिकीय अध्ययन किया है या आंकड़ों को लिया है और उसके आधार पर यह नियम तय किया है। आप इस 8 लाख रुपए के आंकड़े तक पहुंचे कैसे? अगर कोई स्टडी नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट इस नियम को खारिज कर दे? अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और EWS के लिए क्रीमी लेयर तय करने का आधार एक ही है तो क्या इसे मनमाना माना जा सकता है। कोर्ट ने दो मंत्रालयों (सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) से 28 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है। 
आइए, समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों के लिए किए गए आरक्षण को रोकने की चेतावनी क्यों दी है? क्या है यह पूरा मामला? ये क्रीमी लेयर क्या है, जिसके आधार पर तय होता है कि किसे रिजर्वेशन मिलेगा और किसे नहीं?


क्या है मामला?
केंद्र सरकार ने मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए NEET में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% और आर्थिक कमजोर तबकों (EWS) के लिए 10% आरक्षण देने का नोटिस जारी किया है। इसे ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 


सरकार को किस बात के जवाब देने हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे तीन प्रश्न पूछे हैं। पहला, क्या यह आय सीमा तय करते समय शहरी और ग्रामीण क्रय शक्ति को ध्यान में रखा है? दूसरा, किस आधार पर संपत्तियों के होने पर व्यक्ति आरक्षण लेने से वंचित होगा? तीसरा, संविधान के 103वें संशोधन मे कहा गया है कि राज्य सरकारें EWS के नियम तय करेंगी तो केंद्र सरकार पूरे देश के लिए एक-से नियम क्यों लागू कर रहा है?


गरीबों को आरक्षण देने पर आपत्ति क्यों उठ रही है?
मुद्दा गरीबों को आरक्षण देने का नहीं, बल्कि गरीबों की पहचान करने का है। ताकि योग्य और पात्र गरीबों को ही रिजर्वेशन का लाभ मिल सके। सरकार ने तय किया है कि 8 लाख रुपए से कम सालाना आय वालों को EWS कैटेगरी के तहत आरक्षण दिया जाए। इसी को लेकर आपत्ति उठ रही है। इसकी एक वजह यह है कि OBC रिजर्वेशन में भी 8 लाख रुपए की क्रीमी लेयर तय की गई है। अगर किसी OBC उम्मीदवार के परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से अधिक है तो उसे रिजर्वेशन नहीं मिलता। 


2010 में मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसआर सिन्हो पैनल ने EWS कैटेगरी की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या EWS के नियम बनाते समय सिन्हो पैनल की रिपोर्ट पर विचार किया गया था? इसके जवाब में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि 8 लाख रुपए की आय सीमा तय करने के लिए सिर्फ एक रिपोर्ट को आधार नहीं बनाया गया है। इसमें कई तथ्यों को ध्यान में रखा गया है। यह एक नीतिगत मसला है और सुप्रीम कोर्ट को सरकार के नीतिगत मसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।  


क्रीमी लेयर क्या है और यह कैसे तय होती है?
यह सालाना आय सीमा है। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। दरअसल, 8 लाख रुपए सालाना आय वाले OBC परिवारों को रिजर्वेशन नहीं मिलता। वहीं, EWS में 8 लाख रुपए से कम सालाना आय वालों को आरक्षण मिलता है। याचिकाओं और सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दोनों एक-से नहीं हो सकते। एक ही आय सीमा को एक वर्ग के लिए ऊपरी सीमा और दूसरे के लिए निचली सीमा कैसे तय कर सकते हैं।

 
दरअसल, दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 13 अगस्त 1990 को सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 27% रिजर्वेशन का प्रावधान किया था। सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई। इस पर 16 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने (इंदिरा साहनी केस) OBC के लिए 27% आरक्षण कायम रखा और क्रीमी लेयर को रिजर्वेशन के कोटे से बाहर रखा।


इंदिरा साहनी केस में आए फैसले के तहत जस्टिस (रिटायर्ड) आरएन प्रसाद की अध्यक्षता वाली एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई थी। इसे ही क्रीमी लेयर की परिभाषा तय करनी थी। 8 सितंबर 1993 को डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) ने कुछ कैटेगरी के लोगों की सूची बनाई, जिनके बच्चे OBC रिजर्वेशन का लाभ नहीं उठा सकते।

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