बीजेपी ने कहा देश में ‘हर-हर मोदी और घर-घर मोदी’ का नारा अभी लंबा चलेगा

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का एक कारण वे लाभार्थी भी रहे, जिन्हें कोरोना काल में फ्री राशन मिला. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिले. किसान सम्मान निधि का पैसा मिला और महिलाओं के खाते में सीधे रक़म गई. बीजेपी विरोधी इस बात को नहीं समझ पाए.

कुछ भी ऐसा नहीं हुआ, जिसका अंदाज़ा हर किसी को नहीं रहा हो. न बीजेपी की जीत न कांग्रेस की हार न एसपी की सीटों में उछाल और न ही आप का राष्ट्रीय स्तर पर उदय. जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से उत्तर प्रदेश की हार-जीत को 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा था. इसीलिए यूपी में क़िले पर अपना क़ब्ज़ा बनाए रखने के लिए बीजेपी ने पूरी ताक़त लगा दी थी.

ख़ुद प्रधानमंत्री ने प्रदेश के लिए 22 रैलियां कीं, रोड शो निकाले. तब बीजेपी गठबंधन 273 (बीजेपी 255) सीटें जीत कर रुकी. किंतु यह कैसे भुलाया जाए कि एसपी ने सिर्फ़ अखिलेश यादव के बूते अपनी सीटें लगभग तीन गुनी कर लीं. उसकी यह ताक़त विधानसभा में तो दिखेगी ही, विधान परिषद में भी वह सत्तारूढ़ बीजेपी को आंखें दिखाएगी.

आप ने रचा इतिहास

पंजाब में आप की बढ़त थी, लेकिन इतनी बढ़त कि उसने कांग्रेस को 20 तक का आंकड़ा न छूने दिया, यह ज़रूर आशातीत है. जिन भगवंत मान की एक ही छवि लोगों के दिमाग़ में थी कि वे स्टैंडअप कॉमेडियन हैं और परले दर्जे के शराबी, उन भगवंत ने अपना मान रख ही नहीं लिया, लोगों को भी मनवा दिया कि उन्हें हल्के में न लिया जाए. साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू ज़रूर कॉमेडियन साबित हुए और उन्हीं के साथ राहुल गांधी भी. अब देखना यह है, कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भगवंत मान को पंजाब में राज करने के लिए कितनी स्वतंत्रता देते हैं.

यूपी में लगातार दूसरी बार बीजेपी सरकार

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत इसलिए भी महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि वहां बीजेपी की सरकार ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. और एक तरह से पिछले 37 साल बाद कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी की सरकार लगातार दूसरी बार बनेगी. अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ही बनते हैं तो उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार होगा.

इनके पहले चन्द्रभानु गुप्त 1962 में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन यहां यह कहना ग़लत न होगा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी हाई कमान को अकेले योद्धा अखिलेश से निपटने में पसीने छूटे थे. अगर इस प्रदेश के चुनाव में प्रधानमंत्री स्वयं न कूदते तो अखिलेश यादव को सवा सौ तक समेट देना आसान नहीं था.

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