न्यायपालिका को कलंकित करने वाला जज !

22 अप्रैल को पाकिस्तान द्वारा पोषित- संरक्षित आतंकियों द्वारा पहलगाम में 26 हिन्दू पर्यटकों की जघन्य हत्या तथा बाद में हमारे सैन्य ठिकानों पर पाकिस्तानी हमलों के दुस्साहस से युद्ध‌काल जैसी स्थिति बन गई थी। समग्र राष्ट्र (गद्दारों को छोड़कर) की निगाहें दोनों देशों के बीच संघर्ष के बिन्दु पर टिक गई थी। इस बीच एक अतिमहत्वपूर्ण खबर आई और युद्ध के बवंडरों में दबकर रह गई। यदि पहलगाम का नरसंहार न हुआ होता तो यह समाचार सुर्खियां बटोरता और देश के सभी चैनलों पर इसे लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ती तथा पक्ष-विपक्ष के बीच वाग्ययुद्ध छिड़ जाता।

यह समाचार दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवन्त वर्मा से संबंधित है जो करोड़ों रुपये की नकदी मिलने के समाचार से चर्चाओं में आये थे। 16 मार्च को नई दिल्ली के तुगलक क्रिसेंट स्थित इन के बंगले के स्टोर रूम से अग्निशमन कर्मियों को करोड़ों रूपयों के करेंसी नोट मिले थे। पहले नोटों की गड़ियां दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.के उपाध्याय के साथ साझा की। घटना के एक सप्ताह बाद जब मामला मीडिया में उछला तो कहानी में मोड़ दर मोड़ आते चले गए। बोरे में ठूंसे नोट जले हुए मिले, कूड़े के ढेर पर पड़े मिले, दिल्ली फायर सर्विस ने कह दिया कि नोट मिले ही नहीं।

जस्टिस वर्मा ने कहा कि उनके विरुद्ध बड़ी साजिश हुई है। एफआईआर दर्ज न करने पर दिल्ली हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट पर भी उंगलियां उठने लगी। जस्टिस वर्मा के पिछले फैसलों की भी चर्चा होने लगी। सन् 2017 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन गैस की आपूर्ति न होने के कारण बच्चा वार्ड में भर्ती 60 बालकों की मृत्यु हो गई थी। तब काफी तहलका मचा था। विभागीय जांच में डॉ. वकील खान पर लापरवाही बरतने तथा अपनी चिकित्सीय जिम्मेदारी न निभाने का आरोप सिद्ध हुआ था। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। जस्टिस यशवन्त वर्मा ने डॉ. वकील खान की जमानत मंजूर कर ली और 7 मास जेल में रहने के बाद वे बाहर आ गए।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने 22 मार्च को उच्च न्यायालयों के जजों की जांच समिति गठित की जिसमें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधावालिया तथा कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन को सम्मिलित किया गया। सुप्रीम कोर्ट की इस जांच समिति ने जस्टिस यशवन्त वर्मा सहित 50 लोगों के बयान दर्ज किये। जस्टिस वर्मा के बयान व स्पष्टीकरणों में कमेटी को कोई सार नहीं दिखा। जांच समिति ने पाया कि आवास पर मिलें करोड़ों रुपयों की नकदी जस्टिस वर्मा की ही थी। जांच में यह खुलासा भी हुआ कि, अग्निकांड से बचे करोड़ों के करेंसी नोट रहस्यमय ढंग से गायब हो गए थे।

13 मई को सेवा निवृत्ति से पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना ने आदेश दिया कि जस्टिस यशवन्त वर्मा स्वेच्छा से पद‌ छोड़ दें अन्यथा उनके विरुद्ध संसद में महाभियोग चलाया जाए। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में जस्टिस वर्मा का प्रकरण बड़ा शर्मनाक है। इससे न्यायाधीश व न्यायपालिका सवालों के घेरे में आ गए। न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर उन्हें न्यायिक कार्यों से विरत रखा गया है। इलाहाबाद बार एसोसिएशन उनका बहिष्कार कर चुकी है। बेहतर होगा कि जस्टिस वर्मा अपने सीनियर जस्टिस संजीव खन्ना की नेक सलाह मान लें।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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