भ्रष्ट लोकसेवकों के विरूद्ध अभियान !

अभी दो दिन पूर्व हमने लिखा था कि महाराष्ट्र सहित आठ गैर-भाजपाई दलों की सरकारें किस प्रकार बैंक तथा भ्रष्टाचार के 50 हजार करोड़ रुपये के गोलमाल में शामिल अधिकारियों, घोटालेबाजों व लोकसेवकों को बचाने के उद्देश्य से केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) को अपनी जनरल कंसेंट न भेजने का हथकंडा इस्तेमाल कर रही है। इसके विपरीत उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लोकसेवकों के भ्रष्टाचार के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ यानि भ्रष्ट अधिकारियों को बर्दाश्त न करने की नीति बनाई हुई है। उत्तरप्रदेश में संदिग्ध आईपीएस, आईएएस तथा पीसीएस के विरुद्ध अभियान चलाया हुआ है और उनके विरुद्ध कानूनी या विभागीय कार्यवाही की जाती है।

अपर मुख्य सचिव गृह अविनाश कुमार अवस्थी ने मीडिया को बताया कि भ्रष्ट लोकसेवकों के विरूद्ध अभियान चलाकर 1156 लोकसेवकों की रिपोर्ट सतर्कता विभाग को सौंपी गई है। विजिलेंस ने भ्रष्टाचार के दोषी 142 लोगों के विरूद्ध कार्यवाही की है। 202 मामलों में अभियोजन स्वीकृति दी गई तथा 10 मामलों में दण्ड दिया गया। 7 मामलों में क्षति वसूली की गई, 267 मामलों में जांच, 168 में गोपनीय जांच कराई गई। 169 मामलों में अभियोजन जांच तथा 155 में विजिलेंस ट्रैपिंग (रंगे हाथों पकड़ना) कराई गई। 40 दोषियों को न्यायालयों से सजा मिली।

योगी सरकार पुलिस के 400 संदिग्ध चरित्रवाले अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे चुकी है। सभी पुलिस अधीक्षकों से कहा गया है कि वे नवंबर मास के अन्त तक उन विभागीय लोगों की स्क्रीनिंग करायें जो 50 वर्षों तक लोकसेवा कर चुके हैं और जिनकी भ्रष्टाचार व कार्य में लापरवाही की शिकायतें हैं। इन लोगों की भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की जायेगी।

सर्वविदित है कि उत्तरप्रदेश में एक ही राजनीतिक दल की सरकार लंबे समय तक चली जिसमें लोकसेवकों की नियुक्ति व तैनाती में पक्षपात, जातिवाद व पैसावाद के आरोप लगते रहे। सपा-बसपा शासन में ट्रांसफर उद्योग खुल कर चला। न्यायालय को राज्य सेवा आयोग की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाते हुए कहना पड़ा कि क्या एक ही जाति के प्रत्याशी ही विद्वान हैं जिन्हें लोकसेवा को चुना गया, दूसरी जातियों के प्रत्याशी योग्य नहीं है? ऐसा परिस्थिति में लोकसेवकों का ईमानदार व कार्य के प्रति जवाबदेह बना रहना अत्यंत कठिन है। लोकसेवकों को ईमानदार व जवाबदेह बनाना जबरदस्त चुनौती है। बिना दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के यह संभव नहीं है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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