केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता के लिए आवेदन आमंत्रित करने संबंधी 28 मई को जारी अधिसूचना का नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए), 2019 से कोई सरोकार नहीं है। केंद्र सरकार ने अपना यह जवाब इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा इस अधिसूचना को चुनौती देने वाले आवेदन पर दिया है।
गृह मंत्रालय द्वारा 28 मई को जारी इस अधिसूचना में गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा के 13 जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता का आवेदन करने का अधिकार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के जरिए दायर अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह अधिसूचना वास्तव में चुनिंदा मामलों में केंद्र सरकार के अधिकारों को स्थानीय अथॉरिटी को हस्तांतरित करना है। सरकार ने कहा है कि यह अधिसूचना सभी विदेशियों को रियायत देने वाला नहीं है बल्कि कानूनी तरीके से देश में आए विदेशियों के लिए है।
आईयूएमएल ने लंबित सीएए मामले में एक आवेदन दायर कर 28 मई की अधिसूचना को इस आधार पर चुनौती दी है कि नागरिकता अधिनियम के प्रावधान धर्म के आधार पर आवेदकों के वर्गीकरण की अनुमति नहीं देते हैं। नागरिकता अधिनियम की धारा 5 (1) (ए) – (जी) पंजीकरण द्वारा योग्य लोगों को नागरिकता के लिए आवेदन करने की इजाजत देता है। जबकि अधिनियम की धारा-6 किसी भी व्यक्ति (अवैध प्रवासी को छोड़) को प्राकृतिककरण के जरिए नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति देती है।
आईयूएमएल ने अपने आवेदन में कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से दो प्रावधानों को कम करने का प्रयास किया गया है, जो अवैध है। लीग का कहना है कि यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता के अधिकार) की कसौटी पर खरा नहीं उतरती, क्योंकि यह एक विशेष वर्ग के लोगों के उनके धर्म के आधार पर पंजीकरण व प्राकृतिककरण के जरिए नागरिकता के लिए आवेदन का हकदार बनाता है।