रजिस्ट्री दफ्तरों का भ्रष्टाचार


आयकर विभाग की प्रधान आयकर निदेशक (जांच) मीतासिंह ने सरोजनीनगर तहसील के उप-पंजीकरण कार्यालय की जांच में करोड़ों रुपये का पंजीकरण घोटाला पकड़े जाने के बाद उत्तर प्रदेश की प्रमुख सचिव स्टाम्प, लीना जौहरी को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि उत्तर प्रदेश के अभी सबरजिस्ट्री कार्यालयों के पंजीकरण की जांच कराई जाए।

ज्ञातव्य है कि आयकर विभाग ने लखनऊ की सरोजरीनगर तहसील के उप-रजिस्ट्री कार्यालय द्वारा संम्पतियों के पंजीकरण में बड़ा घोटाला पकड़ा था। जांच में पता चला कि रजिस्ट्री दफ्तर में सब-रजिस्ट्रार निर्मल सिंह ने प्रोपर्टी डीलरों व खरीदारों के साथ गठजोड़ करके 1600 करोड़ रुपये की संम्पत्ति का पंजीकरण किया और संम्पतियों के मूल्य का कम आंकलन करके राज्य सरकार को 450 करोड़ रुपये के स्टाम्प शुल्क की हानि पहुंचाई। प्रमुख सचिव स्टाम्प से राज्य के सभी 300 रजिस्ट्री कार्यालयों में हुए पंजीकरणों की जांच कराने को कहा गया है।

रजिस्ट्री में भूमि अथवा सम्मत्ति के मूल्य को कम दिखाना और कम स्टाम्प लगा कर सरकारी खजाने में सेंध लगाने का कार्य रजिस्ट्री कार्यालयों में दशकों से चलता आ रहा है, भले ही सरकार किसी भी दल की क्यूं न हो। क्या शासन चलाने वाले यह नहीं जानते कि रजिस्ट्री कार्यालयों में भ्रष्टाचार पक्का दस्तूर बन गया है? सब रजिस्ट्रार या बाबू की जेबें ही नहीं, दस्तावेजों पर मोहर लगाने वाले चपरासी भी शाम को जेबें भरकर घर लौटते हैं। यह स्थिति हर रजिस्ट्री दफ्तर की है लेकिन सरकार चलाने वालों में इसे रोकने की सामर्थ्य नहीं !

गोविन्द वर्मा

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