नई दिल्ली. भगवान जगन्नाथ की 145वीं रथयात्रा अहमदाबाद में शुक्रवार कड़ी सुरक्षा के बीच शांतिपूर्ण रूप से संपन्न हो गई. इस दौरान लाखों श्रद्धालु भगवान की एक झलक पाने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े. इस वर्ष उत्साह का स्तर विशेष रूप से काफी अधिक था क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद एक पूर्ण रथयात्रा निकाली गई. रथ यात्रा के बहाने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. अमित शाह ने कहा कि गुजरात में कांग्रेस के राज में रथयात्रा के समय दंगे होते थे और एक बार तो महाप्रभु के रथ को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की गई थी.
अमित शाह ने कहा कि भाजपा सरकार में नरेंद्र मोदी से लेकर आज भूपेन्द्र पटेल जी के कार्यकाल तक गुजरात में रथयात्रा पर एक कंकर फेंकने तक की हिम्मत किसी ने नहीं की. बता दें इस बार मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने पुराने शहर के दरियापुर और शाहपुर से गुजरी रथयात्रा का गर्मजोशी से स्वागत किया. इन इलाकों को ‘‘सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील’’ माना जाता है. पुलिस ने बताया कि रथयात्रा के रास्ते में एक लकड़ी के कैबिन की छत गिरने से करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए.
कोरोना की वजह से 2020 में नहीं दी गई अनुमति
वर्ष 2020 में, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा कोविड-19 खतरे के मद्देनजर सामान्य सार्वजनिक रथयात्रा की अनुमति देने से इनकार किए जाने के बाद भगवान जगन्नाथ मंदिर के परिसर में एक प्रतीकात्मक रथयात्रा का आयोजन किया गया था. पिछले साल, केवल तीन रथों और दो अन्य वाहनों ने सामान्य उत्सव के बिना भाग लिया क्योंकि किसी अन्य वाहन, गायन मंडली, हाथी या सजाए गए ट्रकों की अनुमति नहीं थी. शुक्रवार सुबह, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के रथ 18 किलोमीटर के मार्ग पर निकले. इससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सुबह ‘पहिंद विधि’ रस्म अदा की, जिसमें रथयात्रा की शुरुआत से पहले एक सुनहरी झाड़ू का उपयोग करके रथों का रास्ता साफ किया जाता है.
अमित शाह ने मंगला आरती में हिस्सा लिया
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सुबह लगभग चार बजे मंदिर पहुंचे और और ‘मंगला आरती’ में भाग लिया. इस परंपरा का वह पिछले कई वर्षों से पालन कर रहे हैं. इस वर्ष जुलूस में एक दर्जन से अधिक सजे हुए हाथी, झांकियों के साथ 100 ट्रक और धार्मिक समूहों, अखाड़ों और गायन मंडलियों के सदस्यों ने भाग लिया. ये रथ जमालपुर, कालूपुर, शाहपुर और दरियापुर जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों से होते हुए लगभग 12 घंटे बाद देर शाम मंदिर में वापस आए.